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दफा ६५३]
उत्तराधिकारसे बंचित वारिस
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पागलपनके स्पष्ट प्रमाण होने परही कोई पुरुष या स्त्री वरासतसे वंचितकी जा सकती है। केवल बुद्धिकी कमजोरीके कारण, या स्वयं अपनी जायदादका प्रबन्ध करनेकी योग्यता न होनेके कारणसे ही कोई हिन्दू वरासतसे वंचित नहीं किया जा सकता, देखो-सुरती बनाम नरायनदास (1890) 12 All. 530. हत्या या सज़ा पाना या नाकाबिलियतके कारणोंका वर्णन, देखो-सानयेलप्पा होसमानी बनाम चन्नप्पा सोमसागर 29 C.W.N. 2713 861. C. 324 (2); A.I. R. 1924 P. C. 209.
उत्तराधिकारसे वंचित होनेके उपरोक्त नियम स्त्री और पुरुष दोनों से समान लागू होते हैं, देखो-बाकूबाई बनाम मानचाबाई 2Bom.H C.5.
८-प्रचीन शास्त्रोंके अनुसार असाध्य रोग वाले आदमी उत्तराधिकार से वंचित किये जा सकते हैं, परन्तु वर्तमान कानून केवल असाध्य और बहुत बढ़े हुये कुष्टके रोगीको वरासतसे वंचित करता है, देखो-अनन्त बनाम रमाबाई 1 Bom. 654. जनार्दन पाण्डुरंग बनाम गोपाल 5 Bom. H.C. A. C. J. 145; 1 Mad. S. D. A. 239; 11 W. R.C. R. 5357 22 I. A. 94; 22 Cal. 848; b Ben. Sel. R. 315. - रनछोड्नरायन बनाम आजोबाई 9 Bom. L. R. 114. में माना गया है कि-जिसे साधारण कुष्ठ हो और आराम होने वाला हो वह वंचित नहीं रहेगा। यहांपर यह बात कही जा सकती है कि-क्यों न प्राचीन शास्त्रोंकी श्राशा मानकर सभी असाध्य रोगियोंको वरासतसे वंचित किया जाय? परन्तु जैसाकि भट्टाचार्य अपने लॉ आफ ज्वाइन्ट फैमिलीके P. 407. में कहते हैं कि-यह साबित करना बहुत कठिन है कि कौन रोग असाध्य है जो दवासे नहीं अच्छा हो सकता; देखो-ईश्वर चन्द्रसेन बनाम रानीदासी (1865)2 W. R.C. R. 125. प्राचीन समयमें और भी कई ऐसे कारण माने जाते थे कि जिनकी वजहसे हिन्दू वरासत और बटवारेसे वंचित किया जाता था। लेकिन यह अयोग्यता प्रायश्चित्तसे मिट जाती थी, अब कोई अदालत उन कारणोंसे किसी हिन्दूको उत्तराधिकार या बटवारेसे वंचित नहीं करती। लेकिन फिर भी कई मामलोंमें वैसे अयोग्यवारिसके लिये प्रायश्चित्त आवश्यक माना गया है, देखो-11 W. B. C. R. 535; 6 Ben. Sel. R. 62.
प्राचीनकालमें बापका कोई शत्रु वरासत या बटवारेसे वंचित किया जाता था-भोलानाथ राय बनाम सावित्री 6 Ben. Sel. R 62 परन्तु वर्तमान कानून इसे नहीं मानता, देखो--कालिकाप्रसाद बनाम बद्री 3 N. W. P. 267. मनुने तो यहां तक कहा है कि जाल करने या धोखा देने वाला कोपार्सनर बटवारेके समय अपने हिस्सेसे वंचित किया जा सकता है. परन्तु अब ऐसा नहीं होता; अब तो केवल उसको उस जायदादका बटवारा करा लेना पड़ता है जो उसने अपने दूसरे कोपार्सनरोंको वंचित रखने के लिये
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