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दफा ६५२-६५३]
उत्तराधिकारसे बंचित वारिस
इस विषयमें मतभेद है । इलाहाबाद हाईकोर्टने कहा है कि ऐसी विधवाओं का हक़ नष्ट नहीं होता, देखो-खुदू बनाम दुर्गाप्रसाद 29 All. 122; हरसनदास बनाम नन्दी 11 Al. 330; रंजीत बनाम राधारानी 20 All. 476; गजाधर बनाम कौसिल्या 31 All. 161, मूला बनाम प्रताप ( 1910) 32
All. 489; किन्तु मदरास. कलकत्ता और बम्बई हाईकोर्टीकी राय इसके विरुद्ध है। वे कहते हैं कि हक़ नष्ट होजाता है। देखो-22 Cal. 589; 14 C. W. N. 346;1 Mad. 226; 22 Bom. 321.
पुनर्विवाह करनेवाली विधवा दूसरे पतिकी उसी तरह वारिस हो सकतीहै जैसेकि अपने पहिले पतिकी होसकतीथी-देखो एक्ट नं०१५ सन् १८५६ ई० दफा ५; और देखो इस किताबकी दफा ७२८. दफा ६५३ शारीरिक योग्यता
नया कानून एक्ट नं०१२ सन् १९२८ ई० अयोग्यताके सम्बन्धमें लागू है। अभी तक यह बात अनिश्चितथी और इसपर बहुत कुछ मुकदमेबाजी हो जाया करती थी कि अमुक व्यक्ति अयोग्यहै इसलिये उसे बरासत न मिलना चाहिये पर अब वे सब झगड़े चलेगये। इस कानूनके पास होनेके बाद कोई भी झगड़े न पड़ेंगे मगर जिनको वरासतका हक इस कानूनके पास होने यानी ता०२० सितम्बर सन् १९२८ ई०से पहले पैदा हो गया है यदि उनके सम्बन्धमें इस प्रकार के झगड़े पैदा हो गये हों और अभी चलरहे हों तो उनके लिये हिन्दू लॉ में नीचेके विषयके अनुसारही काम होगा। पहले हमारा विचार इस विषयके निकाल देनेका था मगर यह विचारकर कि सम्भव है कि उन सज्जनोंको इसविषयकी आवश्यकता होजाय जिनके ऐसे झगड़े इस कानूनके पास होनेसे पहले पैदा होगये हैं और चलरहे हैं, नहीं निकाला। मेरा अनुमानहै कि यद्यपि यह कानून पहलेके ऐसे झगड़ोंमें लागू न भी होगा पर अदालतोंकी राये इसनये कानूनके असरसे बिल्कुल खाली न होंगी। हाकिमोंकी रायोंमें इसका असर रहेगा और तब वे तोर मनोरकर वैसा फैसला देनेके लिये विवश होंगे। होना न चाहिये कतिपय हाकिम इसकी परवाहभी न करेंगे। नया कानून पीछे देखो इस प्रकरण के।
[१] यह विषय विवादास्पद है इसलिये पहले आचार्योका मत देख (१) अनंशोक्लीव पतितो जात्यन्धबधिरौतथा
उन्मत्तजड़मूकाश्च येचकेनिरिन्द्रियाः। सर्वेषामपितुन्याय्यं दातुंशक्त्यामनीषिणा ग्रासाच्छादन मत्यन्तं पतितो ह्यददद्भवेत् । मनु ६-२०१,२०२