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उत्तराधिकार
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"एवं आसप्तमात्समान गोत्राणां, सपिण्डानां धनगृहणं वेदितव्यम्, तेषामभावे समानोदकानां धनसम्बन्धः"
बाकीके सपिण्डोंकी वरासतके बारेमें इसी तरहपर सात पूर्व पुरुषों तक समझ लेना और जब सपिण्डोंका अभाव हो तो उस वक्त वरासत समानोदकोंको मिलेगी। समानोदकोंके न होनेपर बन्धुओंको (देखो दफा ५६३).
मिताक्षरामें सबसे पिछली जो पूर्वज स्त्रिये हैं यानी-प्रपितामहकी मा, प्रपितामहकी दादी, प्रपितामहकी परदादी। इन औरतोंको पूरे तौरपर वारिस नहीं बताया। इसीलिये बङ्गाल बनारस, और मिथिला स्कूलमें यह तीन औरते वारिस नहीं मानी जातीं। दफा १४४ बम्बई और मदरास स्कूल में अधिक औरतें वारिस
मानी गयी हैं यह सिद्धान्तकि औरतें जो शास्त्रों में पूरे तौरपर वारिस बताई गई है वही जायदाद पावेगी, यह बात बम्बई और मदरास स्कूलमें नहीं मानी गयी है।
(१) बम्बई स्कूलमें, ऊपर बताई हुई दफा ६४० में पांच स्त्रियों के अलावा कुछ अधिक स्त्रियां वारिस मानी गयी हैं । सबब यह है कि वहांपर मनुके १-१८७ श्लोकपर आधार माना गया है, देखो
अनन्तरः सपिण्डाद्यस्तस्य तस्य धनं भवेत् अतउर्द्ध सकुल्यः स्यादाचार्यःशिष्य एवच । ९-१८७.
इस श्लोकका अर्थ 'सर विलियम जोन्स' साहेबने ऐसा किया है कि वरासत नज़दीकी सपिण्डको मिलेगी चाहे वह मर्द हो या औरत । यह अर्थ कुल्लूकभट्टके टीकासे निकाला गया है, देखो
"यः सपिण्डः पुमान स्त्री वा तस्य मृतधनं भवति"
बम्बईमें गोत्रज सपिण्ड स्त्रियोंको प्रिवी कौन्सिलने वारिस माना है रवाजके आधारपर, देखो-लालू भाई बनाम काशीबाई 5 Bom. 110; 7 I. A. 212, 237.
(२) मदरास स्कूलमें कुछ औरतें बन्धु या मिन्नगोत्रसपिण्ड मानी गई है इस बुनियादपर कि मनुके ऊपरके बचनमें 'सपिण्ड' शब्दमें स्त्रियां