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दफा ६४३]
औरतोंकी वरासत
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भिखमंगे-भिखमंगोंसे मतलब उन लोगोंसे है जो ज़ाहिरा दुनियांसे विरक्त देख पड़ते हैं और असलमें भीख मांगना उनका पेशा है। भीखकी आमदनीसे वे अपने परिवारका भरण पोषण करते हैं । कभी कभी आत्मिक उपदेश भी वे करते हैं । ऐसे भिखमंगे साधू या किसी मज़हबके उपदेष्टा या गुरू या चेले नहीं समझे जा सकते चाहे वे किसी वेषमें हों और चाहे जो नाम रख लिया हो। ऐसे भिखमंगोंकी जायदादका उत्तराधिकार बहुत करके हिन्दूला के अनुसार होगा जैसे दूसरे लोगोंका होता है, यदि कोई खास रवाजे न साबित किया जाता हो । देखो स्ट्रेन्ज हिन्दूला ३६७. इसी विषयमें और देखो दफा ६६०. - नोट-महन्त, गद्दीधर, किसी अखाड़े या किसी मजहबके गुरू, मन्दिरके या मठके अधिष्ठता आदिके लिये विस्तारसे देखिये इस किताबका प्रकरण १७. '
(७) औरतोंकी वरासत
दफा ६४३ बंगाल, बनारस, मिथिला स्कूलमें आठ औरतें
..वारिस मानी गयी हैं __बङ्गाल, बनारस, और मिथिला स्कूलका यह माना हुआ सिद्धान्त है कि कोई भी औरत एक मर्दकी जायदाद बतौर वारिसके नहीं ले सकती, जब तककि वह पूरे तौरपर वारिस शास्त्रोंमें न बताई गई हो । नतीजा यह है कि बङ्गाल, बनारस, और मिथिला स्कूलमें सिर्फ आठ औरतें पूरे तौर पर वारिस बताई गई हैं। वह आठ औरतें यह हैं
(१) विधवा (२) लड़की (३) मा (४) बापकी मा (दादी) (५) पितामहकी मा (परदादी)।
इन पांच औरतोंके सिवाय और कोई औरत पूरे तौरपर धर्मशास्त्रों में नहीं बताई गयी इसीलिये इनको छोड़कर दूसरी कोई औरत वारिस नहीं मानी जातीमगर अब सन्१६२६ ई० के नये कानूनके अनुसार, (६) लड़केकी लड़की, (७) लड़कीकी लड़की, (८) बहन यानी यह तीन स्त्रियां मी वारिस मानी गई हैं।
मिताक्षरामें वरासतके सिलसिलेमें जिन जिन वारिसोंका नाम बताया गया है वह बापके चाचाके लड़केपर समाप्त हो जाता है। आगेके वारिसोंके लिये मिताक्षरा यह कहता है कि----