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दफा १]
हिन्दूला की उत्पत्ति
॥अनुलोमज ॥ विप्रान्मूर्द्धावसिक्तोहि क्षत्रियायां विशः स्त्रियाम् । अम्बष्ठः शूद्रयां निषादो जातः पार शवोऽपिवा ॥ या० ६१ वैश्या शूद्रयोस्तु राजन्यान्माहिष्योग्रौ सुतौस्मृतौ । वैश्यात्त करणः शूद्रयां विन्नास्वेष विधिः स्मृतः॥ या०६२
॥प्रतिलोमज ॥ ब्राह्मण्यां क्षत्रियात्सूतो वैश्यादैदेहि कस्तथा । शूद्राज्जातस्तु चाण्डालः सर्व धर्म वहिष्कृतः॥ या० ६३ क्षत्रिया मागधं वैश्याच्छूद्राक्षत्तार मेवच । शूद्रादायोगवं वैश्या जनयामास वै सुतम् ॥ या०६४
भावार्थ यह कि-ब्राह्मण पु० क्षत्रिया स्त्री० से १ मूर्द्धावसिक्त, ब्राह्मण पु० वैश्या स्त्री० से २ अम्बष्ठ, ब्राह्मण पु० शूद्रास्त्री० से ३ निषाद और पारशव, क्षत्रिय पु० वैश्या स्त्री० से ४ माहिष्य, क्षत्रिय पु० शूद्रा स्त्री० से ५ उग्र, तथा वैश्य पु० शूद्रा स्त्री० से करण नामक उप-जातियां उत्पन्न होती हैं ये विवाहित स्त्रियों से यदि उत्पन्न हुयी हैं तो 'अनुलोमज' कहलाती हैं । इसी प्रकार क्षत्रिय पु० ब्राह्मण स्त्री० से १ सूत, वैश्य पु० ब्राह्मण स्त्री० से २ वैदेहिक, शूद्र पु० ब्राह्मण स्त्री० से ३ चाण्डाल, वैश्य पु० क्षत्रिय स्त्री० से ४ मागध, शूद्र पु० क्षत्रिय स्त्री० से ५ क्षत्तार, शूद्र पु० वैश्या स्त्री० से ६ आयोगव नामक उप-जातियां उत्पन्न होती हैं । ये विवाहित स्त्रियों से यदि उत्पन्न हुयी हैं तो 'प्रतिलोमज' कहलाती हैं। इसी तरह पर उपरोक्त उप-जातियों में असम उप-जातियों के परस्पर विवाहिता तथा अविवाहिता स्त्रियों से जो संतान उत्पन्न होती हैं संकीर्ण संकर' उप-जातियां कहलाती हैं। अनुलोमज में पुरुष की जाति या उप-जाति ऊंची रहती है और स्त्री की नीची तथा प्रतिलोमज में स्त्री की जाति या उप-जाति ऊंची रहती है और पुरुष की नीची। प्रतिलोमजकी अपेक्षा अनुलोमज अच्छे समझे जाते हैं। यह सिद्धांत समस्त हिन्दू जाति और उप-जातियों में माना जाता है । ये सब जाति और उप-जातियां चाहे कितनी भी दूरकी हों सब हिन्दू समाजके अन्तर्गत हैं और हिन्दू-लॉ के • प्रमुत्वको मानती हैं । अनुलोमज और प्रतिलोमज वैवाहिक स्त्रियों से उत्पन्न संतानका विवेचन विवाह प्रकरणमें सविस्तार किया गया है इस सम्बन्धमें देखो नया फैसला 1922 B. L. R. 5. देखो दफा ५७
मान