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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
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दफा ६१२ बापकी मा ( दादी) की वरासत
(१) लड़के, पोते, परपोते, विधवा, लड़की, नेवासा, माता, पिता, 'भाई, भाईके लड़के, भाई के पोतेके न होनेपर बापकी माता यानी दादीको जायदाद मिलेगी। मिताक्षरामें कहा गया है कि -
भातृपुत्राणामप्यभावे गोत्रजा धनभाजः,गोत्रजाःपितामही सपिण्डाः समानोदकाश्च । तत्रपितामही प्रथमंधनभाक्
___ अर्थात् भाईके लड़कों और पोतोंके अभावमें गोत्रज धन पाते हैं, गोत्रजोंमें पितामही ( दादी) और सपिण्ड ( देखो ५८२) और समानोदक (दफा ५६६) शामिल हैं। इनमें सबसे पहिले पितामही जायदाद पावेगी। . (२) दादीको उत्तराधिकारमें जायदाद महदूद हकके साथ मिलती है (देखो दफा ५६६) और उस जायदादको वह सिवाय कानूनी ज़रूरतोंके जो इस किताबकी दफा ६०२, ७०६ में बताई गई हैं इन्तकाल नहीं कर सकती। मगर उसे जायदाद के मुनाफे पर और मुनाफेकी बचत पर पूरा अधिकार प्राप्त है। अगर कोई दादी जायदादके मुनाफेसे दूसरी जायदाद खरीद करे या नकद जमा करे तो उस जायदादपर और रुपये पर दादीका पूरा अधिकार होगा; यानी दादीके मरनेपर वह जायदाद जो वरासतमें मिली थी पोतेके रिवर्ज़नर वारिस ( देखो दफा ५५८). को जायगी और जो जायदाद उसने मुनाफेकी बचतसे खरीदकी है या नकद छोड़ी है उस ( दादी) के वारिस को मिलेगी। दफा ६१३ बापके बापकी वरासत (पितामह-दादा)
(१) लड़के, पोते, परपोते, विधवा, लड़की, नेवासा, माता, पिता, माई, भाई के लड़के, भाईके पोते, बापकी माताके न होनेपर उत्तराधिकारमें पितामहको जायदाद मिलेगी। मिताक्षरामें कहा गया है कि- पितामह्याश्चाभावे समानगोत्रजः सपिण्डाः पितामहादयो धनभाजः
पितामही (दादी) के अभावमें समान गोत्रज सपिण्ड पितामह (दादा) आदि धन पाते हैं । आदिसे मतलब यह है कि पहिलेके न होनेपर दूसरा।
(२) पितामह ( दादा ) जायदादको पूरे अधिकारोंके साथ लेता है (देखो दफा ५६४).
(३) बेटेकी लड़की, लड़कीकी लड़की, बहन और बहनके बेटेकी वरासत पापके पाप (दादा) के बाद एक्ट नं० २ सन् १६२६ ३० की दफा २ के