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दफा ५११-५१३ ]
farter अधिकार
यह माना गया है कि जब किसी खरीदारने रजामन्दीसे किसी कोपानरका हिस्सा उसकी मुश्तरका जायदाद में खरीद किया हो तो वह बम्बई और मदरास प्रान्तमें खरीदे हुये हिस्सेके बटा पानेका दावा कर सकता है मगर बङ्गाल और संयुक्त प्रांतमें जैसा कि मिताक्षराका अर्थ माना जाता है उसके अनुसार कोई कोपार्सनर बिना मंजूरी दूसरे सब कोपार्सनरोंकी मुश्तका जायदादका अपना हिस्सा बेच नहीं सकता इसलिये खरीदार के बटवारा करा पाने का हक़ ऐसी जायदादमें अनिश्चित है ।
( २ ) स्त्रियोंका अधिकार
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दफा ५१३ बटवारे के समय पत्नीका अधिकार
पत्नी से मतलब यह है कि जिसका पति जीवित हो-इस विषय में याज्ञ: वल्क्य कहते हैं कि
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यदि कुर्यात्समानंशान पत्न्यः कार्याः समाशिकाः नदत्तं स्त्रीधनं यासां भर्त्रावा श्वशुरेण वा । व्यव० ११५ यदा स्वेच्छयापिता सर्वानेवसुतान समविभागिनः करोति तदा पत्न्यश्च पुत्रसमांशभाजः कर्तव्याः यासां पत्नीनां भर्त्रा श्वशुरेणवा स्त्रीधनं नदत्तं । दत्तेषु स्त्रीधने श्रद्धांश वक्ष्यति दत्तेत्वर्थं प्रकल्पयेत् इति मिताचरा ।
जब पिता अपनी इच्छासे पुत्रोंको समान भाग करके जायदाद बांटता हो तो अपनी उन पत्नियोंको भी पुत्रोंके बराबर हिस्सा दे जिन्हें पति या श्वसुरने स्त्रीधन न दिया हो। यदि दिया हो तो पुत्रके हिस्से से आधा हिस्सा देवे । मगर हिन्दूलों के अनुसार पिताकी इच्छा नहीं मानी जाती, उपरोक्त बचन का जैसा कि अर्थ स्कूलोंमें माना जाता है उसके अनुसार माना गया है कि -
दक्षिण हिन्दुस्थानको छोड़कर अन्यत्र मिताक्षरालों का यह नियम है कि जब बाप और बेटोंके परस्पर बटवारा हो तब एक पुत्रके हिस्से के बराबर बापकी पत्नी (माता या सौतेली माता ) को भी एक हिस्सा मिलेगा, यह