________________
[ आठवां प्रकरण
मिताक्षरा स्कूल - मिताक्षरा स्कूलके अनुसार हरएक बालिग़ कोपार्सनर ज़बरदस्ती मुश्तरका खान्दानकी जायदादका बटवारा करा सकता है लेकिन शर्त यह है कि पिताके जीवित रहते दादा और पोतेमें या पिता और दादाके जीवित रहनेपर दादा और परपोते के दरमियान बटवारा नहीं सकता, देखोविशनचन्द्रराय बनाम समेदा कुंवर 11 I. A. 164; 6 All. 560; इसके विरुद्ध, देखो - जुगुल किशोर बनाम शिवसहाय 5 All. 450; 16 Bom. 29; इस विषय में मनु कहते हैं कि:
६०४
बटवारा
ऊर्ध्वं पितुश्च मातुश्च समेत्य भ्रातरः समम्
भजेरन्यैतृकं रिक्थ मनीशास्ते हिजीवतोः ६- १०४
सब भाई अपने माता पिताकी मृत्यु होनेपर मौरूसी धनको बराबर बांट लें, किन्तु उनके जीवित रहनेपर धन बांटनेका पुत्रोंको अधिकार नहीं है, मगर अब यह बात दायभाग स्कूल को छोड़ कर अन्यत्र नहीं मानी जातीमाना यह गया है कि वे लोग जो मुश्तरका जायदादमें अपना हक़ रखते हैं हरवक्त अपने अपने हिस्सेका बटवारा करा सकते हैं बटवारे के समय सिर्फ उनको अपनी अपनी रिश्तेदारीसे अपना हक़ निश्चित करना पड़ेगा, देखोभट्टाचार्य का हिन्दूलॉ 2 Ed. P. 322; मिताक्षरा स्कूलमें कोई स्त्री बटवारा खुद नहीं करा सकती ।
बापके बटवारे पर पुत्रोंकी आपत्ति कब हो सकती है - हिन्दूलॉ के अनुसार पिताको अधिकार है कि अपने जीवन कालमें ही अपने पुत्रोंके मध्य बटवारा कर दे । पुत्रों को अधिकार है कि बालिग होने पर, यदि बटवारेमें उनका कुछ अहित हो, तो एतराज़कर सकते हैं - बापू बनाम शंकर 28 Bom. L. R. 46; 93 I. C. 213; A. I. R. 1926 Bom. 160.
-1
नालिश बग़रज तक़सीम-जायदाद छूट जानेसे दावा खारिज हुआकिसी हिन्दू मुश्तरका खान्दानके एक सदस्य द्वारा बटवारेके लिये दायर की हुई नालिश, इस लिये खारिज कर दी गई, कि उस खान्दानकी समस्त जायदाद एकसाथ नहीं एकत्रितकी गई थी। इसके बादभी उस जायदादका बटवारा तोल या नाप द्वारा भी नहीं हुआ । तय हुआ कि मुश्तरका पनसे यह समझा जाता है कि वह तमाम जायदाद जो सदस्योंके क़ब्जे में हैं, यदि यह न साबित किया जाय कि उसमें से कोई ख़ास जायदाद किसी मेम्बरने उपार्जितकी है, तो वह ऐसी जायदाद है जिसके सम्बन्धमें बटवारा होना चाहिये - हजारीलाल बनाम रामलाल 47 All. 746; 23 A. L. J. 621; L. R. 6 All 379; 28 I. C. 422; A. 1. R. 1925 All. 813.