________________
६०२
बटवारा
[आठवां प्रकरण
एवं सहबसे युर्वा पृथग्वा धर्मकाम्यया पृथग्विवर्धते धर्म स्तस्माद्धापृथक्रिया -१११
भाइयोंको उचित है कि इकट्ठे रहें अथवा धर्मको वृद्धिकी इच्छासे धन बांट करके अलग अलग निवास करें। अलग अलग रहनेसे धर्म वृद्धि होती है।
बटवारे, को धर्मशास्त्रमें “दायविभाग" कहते हैं । मुश्तरका जायदाद दो तरह की होती है। एक तो मुश्तरका खान्दानकी जायदाद और दूसरी वह जायदाद जो खुद कमाई हुई हो और मुश्तरकामें शामिल हो सकती हो, देखो दफा ४१७, जितने क़िस्मकी मुश्तरका जायदाद है उसका बटवारा हो सकता है, और जो नहीं है उसका उसके मालिकके जीवन-कालमें बिना मर्जी उसके बटवारा नहींहो सकता, बिना बटवारेके हिस्सा निश्चित नहीं होता।
नालिश किसी सदस्य द्वारा अधिकार करार देनेकी-बिना बटवारेके दावेके कोई खास हिस्सा नहीं नियत होता-रामस्वरूप बनाम मु० कतूला 83 I. C. 227; A. I. B. 1925 All. 211.
हिन्दूलॉ का यह सिद्धांत है कि बटवारा वह वस्तु है कि जिसके होजाने से मुश्तरका खान्दानके आदमी एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और फिर वे कोपार्सनर नहीं रहते तथा सरवाइवरशिप का हक्क टूट जाता है।
मिताक्षरा स्कूलके अनुसार मुश्तरका खान्दानके लोंगोंकी अलाहदगी दो तरहसे होती है, एक तो हकका बटवार दूसरा जायदादका बटवारा । हकका बटवारा उसे कहते हैं जिसमें सब कोपार्सनरोंके हिस्से निश्चित करके उसका मुनाफा भी अलग अलग कर दिया जाय और ऐसा हो जानेके बाद सब कोपासनर टेनेण्ट इन् कामन (Tenent in Common) (देखो दफा ५५८) के तौर पर अपने हिस्सेपर काबिज़ रहते हैं जायदादके बटवारेमें जायदाद नाप जोख करके सबका हिस्सा अलग अलग कर दिया जाता है और सरवाइवरशिपका हक टूट जाता है । सरवाइवरशिपका हक, देखो दफा ५५८.
__ दायभाग स्कूलके अनुसार बटवारा यह है कि कोपार्सनरों के हिस्सेके अनुसार जायदाद उनमें बांट दी जाय क्योंकि दायभागमें हरएक कोपार्सनरके हिस्से निश्चित रहते हैं । दफा ४६८. दफा ५०४ बटवारा करापानेका कौन हक़दार है ?
श्राम क़ायदा यह है कि किसी जायदादमें जिन लोगोंका हिस्सा हो बटवारा करा सकते हैं, देखो-शङ्करवख्श बनाम हरदेववश 16 I. A. 719 16 Cal. 397; सेक्रेटरी आफ स्टेट बनाम कामाक्षीचाई साहबा 7 M. I. A. 476, 537; 4 W. R. P. C. 42, 45; विधवाओंके लिये 24 Mad. 441,