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पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्ज़ा
[ सातवां प्रकरण
इस विषय पर नज़ीर देखो - शङ्करनाथ पण्डित बनाम मदनमोहनदास 14 C. W.N.298.
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पहली जनवरी सन् १९०८ ई० के पहले जैसा क़ानून था उसके अनुसार पुत्र उस जायदाद की कुर्कीपर आपत्ति कर सकता था जो उसके बापकी जिन्दगीमें सादे क़र्जेकी हुई हो, देखो -प्यारेलालसिंह बनाम कुञ्जीलाल 16 All. 449; 11 All 302; 28 All. 51; 32 Mad. 429; 16 Mad. 99; 11 Mad. 413; 13 Mad. 265; 5 Mad. 232; 6 C. W. N.223;28Cal 517.
काली कृष्ण सरकार बनाम रघुनाथदेव (1903) 31 Cal. 224. लेकिन जब बापके जीवनकालमें उस डिकरीकी इजरासे कुर्की न हुई हो (चाहे इजरा हो भी गयी हो); तो मदरास और इलाहाबाद हाईकोर्टकी राय में और बङ्गाल के भी कुछ फैसलोंके अनुसार पुत्र पर नये सिरेसे दावा करना होगा, देखोइसी पैराकी नजरें ।
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Marat हाईकोर्ट और बङ्गाल हाईकोर्टके फुलबेन्चकी यह राय हुई कि ऐसी डिकरी पुत्रोंके विरुद्ध जारीकी जा सकती है नये सिरेसे मुक़द्दमेकी ज़रूरत नहीं है, देखो -- 28 Bom. 383; 6 Bom. L. R 344; 20 Bom. 385, 34 Cal. 642; 11 C. W. N. 593.
रेनकी डिकरीका इजरा भी इसी तरह पर होगा, देखो-20 Cal. 895. अगर डिकरीका वोझ कोपार्सनरी जायदादपर हो तो बापके मरनेके बाद इजराकी कार्रवाई उसके पुत्रोंके विरुद्ध हो सकती है, देखो-- 7 Mad. 339; 4 Mad. 1.
दफा ४८८ पुत्रका हक़ कब चला जाता है ?
arus frरुद्ध जो डिकरी हुई हो उसके इजराके नीलामसे सिर्फ बाप काही बिना बटा हुआ हक़ चला जाता है या सारे खान्दानका बिना बटा हुआ हक़ चला जाता है ? इस प्रश्नका फैसला इजराकी कार्रवाईपर निर्भर हे । अदालत सिर्फ यह देखेगी कि वास्तवमें क्या बेचा गया और खरीदारने उसको क्या समझकर खरीदा, देखो -- 14 I. A. 84; 10Mad. 241; 14 I. A. 77, 83; 14 Cal. 572; 31 I. A. 1; 27 Mad. 131; 8 C. W. N. 180; 8 Cal. 898; 10 C. L. K. 505; 12 Bom. 691. इस प्रश्नमें क़ानून और वास्तविक घटनायें दोनों मिली रहती हैं, देखो--नीचेके मुक़द्दमों में माना गया है कि केवल बापका हक़ नीलामसे चला गया 4 I. A. 247; 3 Cal. 198; 1 C. L. R. 49; 14 I. A. 77; 14 Cal. 572; 11 I. A. 26; 10 Cal. 626; 9 All. 672; 14 I. A. 84; 10 Mad. 241; 8 Bom. 489; 15 Bom. 87; 23 Cal. 262; 2 All. 800; 2 All. 899; 7 C. L. R. 218; - 5 Cal. 425, 5 O. L. R. 112. अब देखिये नीचेके मुक़द्दमोंमें यह माना