________________
५७७
दफा ४८२ ]
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
कोर्टने माना कि जब मुद्दईको यह मालूम हो कि उस जायदादमें हक़ रखने वाले कुछ और लोग भी हैं लेकिन उसने मुक़द्दमेमें उनको फ़रीक़ न बनाया हो तो उन लोगोंको अर्थात् पुत्रको अधिकार है कि वे उस मुक़द्दमेकी डिकरी अपने ऊपरसे खारिज करा दें, देखो -- सूरजप्रसाद लाला बनाम गुलाबचन्द 28 Cai. 517; 5 C. W. N. 640; 27 Cal. 724; 4 C. W. N. 701. इस बातका बार सुबूत पुत्रोंपर है, देखो - - रामनाथगय बनाम लक्ष्मणराय 21 All. 193. इलाहाबाद हाईकोर्ट की राय, उक्त बङ्गाल हाईकोर्ट की रायके विरुद्ध कुछ मुक़द्दमोंमें रही है; जैसे- बलवन्तसिंह बनाम अनन्तसिंह (1910) 33 AJ1. 7. लेकिन एक और मुक़द्दमे में इलाहाबाद हाईकोर्टने बङ्गालके हाईकोर्ट की रायके अनुसार अपनी राय प्रकाश की है, देखो - रामप्रसाद बनाम मनमोहन 30 All. 257.
बङ्गाल हाईकोर्ट की रायका यह मतलब है कि जब मुक़द्दमेमें पुत्र फरीक़ बनाये जाने से छूट गये हों तो वह डिकरी महज़ इस वजहसे खारिज नहीं हो जायगी बलि मुद्दईको पुत्रोंके विरुद्ध नया दावा करना होगा और इस नये दावेसे वह क़र्ज़ा कोपार्सनरी जायदादके नीलामसे वसूल किया जासकता है, देखो - धर्मसिंह बनाम अङ्गनलाल 21 All 301. लछिमनदास बनाम डालू 22 All 394. रामसिंह बनाम सोभाराम 29 All 544; 28 Cal. 517; 6 C. W. N. 640; 2≠ All. 211.
मदरास और बम्बई हाईकोर्टकी यह राय है कि इस विषयमें जो क़ानून है वह ट्रान्सफर आफ प्रापरटी एक्ट नं० ४ सन १८८२ ई० के पास होनेसे नहीं बदल गया, देखो- -21 Mad. 222; 22 Mad. 207; 34 Bom. 354; 12 Bom. L. R. 219; 12 Bom. L. R. 811; 12 Bom. L. R. 940.
मुहम्मद असकरी बनाम राधेरामसिंह 22 All 307 वाले मामले में अदालतने माना कि जब कोई मुक़द्दमा बाबत रेहन या किसी कन्ट्राक्टके मुश्तरका खान्दानके मेनेजरपर दायर किया गया हो तो उसकी डिकरी हो जानेके पश्चात् वे सब मेम्बर पाबन्द होंगे जिनका कि हक़ उस जायदादमें था और एकही हैसियत रखते थे । अर्थात् ऐसी डिकरी हो जानेपर फिर डिकरीदारको दूसरे मेम्बरों पर दावा करने की ज़रूरत नहीं है ।
क़ानून जावता दीवानी एक्ट नं० ५ सन १९०८ ई० आर्डर नं० ३४ के रूल नं० १ में कहा गया है कि - "इस क़ानून की शर्तोंका ख़्याल रखते हुए यह ज़रूरी है कि वह सब लोग जो किसी रेइनकी जायदादमें हक़ रखते हों उस रेहनके दावेमें फरीक़ बनाये आयें" इस क़ानूनके आर्डर ३४ से वे सब मुशकिलें जो क़ानून इन्तक़ाल जायदाद एक्ट नं० ४ सन १८८२ ई० की दफा २५वीं के अनुसार पैदा होती हैं साफ तौरसे तय नहीं होगयीं, यह बात मानी
73