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________________ दफा ४८१ ] पुत्र और पात्र की जिम्मेदारी विचार रेहन या वय या इन्तक़ालके फरीक़ोंके कामों तथा उस मुक़द्दमें की सूरतपर निर्भर होता है; देखो - शम्भूनाथ पाण्डे बनाम गुलाबसिंह 14 I. A. 77–83; 14 Cal 572-579. ५७३ अगर ऐसा मामला हो कि बापने मौरूसी जायदाद किसी पुराने क़र्ज़ के देनेके लिये नहीं बेंची तो भी जब तक पुत्र यह साबित न करें कि वह रुपया किसी बे क़ानूनी या बुरे कामोंके मतलब के लिये बापने लिया था और उन्हीं कामों में खर्च किया तब तक उस बयनामाको खारिज नहीं करा सकते अर्थात ऐसा साबित करनेपर बिना रुपया वापिस दिये खारिज करा सकते हैं: देखो हसमतराय कुंवर बनाम सुन्दरदास 11 Cal. 396. नाथूलाल चौधरी बनाम चादीसाही 4 B. L. R. A. C. 15; 12 W. R. C. R. 447. जब बापने सिर्फ अपना हिस्सा या कुल मुश्तरका जायदाद इन्तकाल किया हो और कोई यह कहता हो कि यह इन्तकाल नाजायज़ है तो इस प्रश्नका फैसला इन्तक़ालकी दस्तावेज़के शब्दोंही से नहीं कर दिया जायगा बल्कि उस इन्तक़ालके दूसरे चारो तरफके सम्बन्धोंको देखकर भी किया जायगा और इसके साबित करनेका बार सुबूत उस पक्षकारपर है जो दावा करता हो, देखो - नरायनराव दामोदर बनाम - बालकृष्ण Bom. P. J. 1881. P. 293. प्रिवी कौन्सिलका श्राख़ीर फैसला -- भूपसिंह मुद्दाअलेह नं०१ के लड़के और पोते मिताक्षराके मुश्तरका हिन्दू खान्दानमें रहते थे, भूपसिंह खान्दान का मुखिया था उसने सन् १८८२ ई० में मुश्तरका खान्दानकी जायदाद मौज़ा 'पंदात' का एक विस्वा हिस्सा चूरनसिंहके पास रेहनकर दिया । सन १८८३ में उसी जायदादको २००) रु० पर उसने भागीरथीके पास फिर रेहन कर दिया । सन् १८८४ ई० में उसने फिर वही जायदाद साहू रामचन्द्र मुद्दईके पास रेहन की । सन् १८६३ ई० में साहू रामचन्द्रने रेहनकी नालिश करके बापपर डिकरी प्राप्त करली, पहलेके रेहननामोंका रु० अदा करके अपने हक़ में उन्हें इन्तक़ाल करा लिया । सन् १९१० ई० में भागीरथके रेहननामेकी नालिश की गयी इस रेहननामेमें लिखा था 'मैंने अपनी ज़रूरत से क़र्ज़ लिया दावा में कहा गया कि भूपसिंहने क़ानूनी ज़रूरतसे रु० लिया था, सब जजने क़ानूनी ज़रूरत साबित न होनेसे दावा डिस्मिस् किया, इलाहाबाद में अपील हुयी किन्तु वहां भी अपील डिस्मिस हुआ । प्रिवी कौन्सिलमें जब यह मामला पेश हुआ जजोंने निम्न लिखित नतीजे निकाले । १ - मिताक्षराला के हिन्दू सम्मिलित परिवारके मेम्बरोंके द्वारा जो जायदाद पैदा की गयी हो वह दानमें नहीं दी जा सकती और न वह रेहन या बिक्रीकी जा सकती है जब तक कि सब मेम्बरोंकी मंजूरी न हो जाय ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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