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दफा ४७६ ]
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
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भतीजेको पाबन्द नहींकर सकता; देखो-गंगूलू बनाम अंचाबापूलू 4 Mad. 73; रामरतन बनाम लक्षमणदास (1908 ) 30 All. 460; फूलचन्द बनाम मानसिंह : All. 309; 9 Cal.495; 12C.L.R 292,297; परिमनदास बनाम महूमल 24 Call.672; परन्तु शर्त यह है कि वह क़र्जा जायदादके इन्तकालसे पहले लिया गया हो इसपर फैसले देखो--29 Mad.200; चन्द्रदेवसिंह बनाम माताप्रसाद 31 All. 176; कालीशङ्कर बनाम नबाबसिंह (1909); 35 Bom.
9:12 Bom. L. R, 910: 20 Cal. 328:34 Cal. 7353; 11 c. W. N. 613; 27 Cal. 762; 6 Cal. 135; 7 C. L. R. 97; 5 Cal 855; 6 C. L. R. 470; 15 All. 75, 80.
अगर कर्जा अनुचित और बेक़ानूनी कामोंके लिये लिया गया हो तो उसके ज़िम्मेदार पुत्र और पौत्र नहीं होते, देखो-6 Mad. I. A. 393; 18 W. R C. R. 81; 8 Cal. 517; 10 C. L. R. 489; 8 Bom. 481; 15 B. L. R. 264; 23 W. R. C. R. 365; 3 Cal. 1; 4 Mad. 1; 4 Mad. 73:9 Mad. 3433; 2 Bom 494.4983 5 Bom. 621; 6 Bom. 520; 2 Bom. L. R. b9; 3 All. 125: 11 Cal. 396, 5 C. L. R. 224; 2 Cal, 438; 6 Mad. 400; 2 C. W. N. 603; 12 C. L. R 104,1 Bom. 262. 25 W. R.C. R. 311.
बाबुआना-बाबुआना ((trant) के तौरसे जो जायदाद मिली हो उससे भी यह नियम लागू होता है, देखो-दुर्गादत्तसिंह वनाम रामेश्वरसिंह बहादुर ( महाराज) (1909 ) 36 I. A. 176. 36 Cal. 943; 13 C.w. N. 1013; 11 B. L. R. 901.
बापका क़र्जा बंटे चाहे मंजूर करें या न करें वे पाबन्द अवश्य माने जायगे देखो-फूलचन्द बनाम मानसिंह ( 1882) 4 All. 309, बापका कर्जा चुकाने के लिये बेटोंको जायदाद का इन्तक़ाल करनाही पड़ेगा इसलिये पिता अपनी जिन्दगीमें अपने ज़ाती कर्जे के लिये कोपार्सनरी जायदादके इन्तकाल करनेका अधिकार रखता है मानो वह अपने बेटोंकी तरफसे इन्तकाल करता है इस लिये बाप कोपार्सरी जायदादका इन्तकाल इस ढंग से नहीं कर सकता कि उसके बेटेका हक़ भी पाबन्द होजाय अर्थात् बेटेका हक्र जब किसी डिकरीमें कुर्क होगया हो तो बाप उसे इन्तकाल नहीं कर सकता-सुवारागा बनाम नागाअप्पा 33 Bom. 264; 10 Bom LR.1206.
बापने कर्ज बेकानूनी और अनुचित कामोंके लिये लिया यह बात 'पुत्रको साबित करना होगा और यह भी सबित करना होगा कि खरीदारको
या कर्जा देनेवालेको यह बात मालूम थी या वह जांच करके मालूम कर सकता था कि वह कर्जा अनुचित कामोंके लिये लिया गया था; देखो-गिरधारीलाल बनाम कांतोलाल 1 I. A. 321; 14 B. L. R. 187; 22 W.