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पैतृक ऋण मौरूसी क़र्ज़ा
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सातवां - प्रकरण
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
दफा ४७६ पुत्रका कर्तव्य और जिम्मेदारी
जब कोई हिन्दू पुत्र या पौत्र अपने बाप या दादासे अलग न हुआ हो तो हिन्दूलों के अनुसार उस पुत्र और पौत्रका कर्तव्य है कि अपने बाप या दादाका लिया हुआ क़र्ज़ा अदा करे, देखो - नारदस्मृतिः कोलब्रुकड़ाईजेस्ट Vol. 1. P. 267,334 फकीरचन्द बनाम दयाराम 25 All 67 मगर शर्त यह है कि वह क़र्जी अनुचित और बे क़ानूनी कामोंके लिये न लिया गया हो देखो - कोलब्रुकड़ाईजेस्ट P. 300 और यह कि उस क़र्जेकी तमादी न हो गयी हो, सुब्रह्मण्य ऐय्यर बनाम गोपाल ऐय्यर 30 Mad. 308.
हिन्दू धर्म शास्त्रानुसार हिन्दू पुरुष और उसका बाप तथा उसका दादा और परदादा ये चारों एकही श्रात्मा भिन्न भिन्न चार शरीरमें माने जाते हैं इस सिद्धांतके अनुसार परदादाके क़र्जेका पाबन्द परपोता होना चाहिये परंतु लिमीटेशन एक्टके खास क़ायदेके अनुसार परदादाके क़र्जेकी देनदारी पर - पोतेपर नहीं पड़ती। बापका क़र्जा अनुचित है सिर्फ इस कारण कोई पुत्र बापका क़र्जा अदा करनेकी ज़िम्मेदारीसे छूट सकता है लेकिन वह जायदाद पर किसी विवाद को डालकर नहीं छूट सकता । मतलब यह है कि चाहे जायदाद मौरूसी हो या क़र्ज लेने वालेकी खुद कमाई हो दोनोंही हालतों में उसका क़र्जा पुत्रको पाबन्द करता, देखो -- हनुमानप्रसाद पांडे बनाम मुनरा6 Mad 1. A. 393; 10 W. R. C. R. P. 81; 1 I. A. 321; 14 B. L. R. 187, 197; 22 W. R. C. R. 56, 58.
मिताक्षराके अनुसार कोपार्सनरी जायदादमें बाप और बेटेका यद्यपि एकसाही हक़ होता है परन्तु बाप उस जायदादकी आमदनीमेंसे अपने जाती कर्जा चुका सकता है और जायदादपर उस क़र्जेका बोझ डाल सकता है और जायदादका या उसके किसी हिस्सेका इन्तक़ाल करके अपने बेटों या पोतोंको चाहे वे बालिग़ हों या नाबालिग पाबन्दकर सकता है, लेकिन