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[ छठवां प्रकरण
खान्दानी साझीदारोंके खिलाफ़, जो कि बयनामेके समय मौजूद थे, बीती हुई मियाद किसी नाबालिग साझीदारके पैदा होने या गर्भ में आने से पुनर्जीवित नहो सकेगी, सिकन्दरसिंह बनाम बच्चूपांडे AI R.1925Ajl 54. मावजा - मावज़ेका अधिक भाग ऐसा पाया गया जिसकी जिम्मेदारी थी -- डिकरीकी क़िस्म - सनमुख पांडे बनाम जगन्नाथ पांडे 83 I. C. 838; A. I. R. 1924 All. 708.
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मुश्तरका खान्दान
पीछेसे पैदा हुआ सदस्य इन्तक़ाल मंसूरन करा सकता है - अधिकारसीतारामसिंह बनाम छेदीसिंह 46 All. 882; 83 1. C. 1052; A. I. R. 1924 All. 798.
नोट - ऊपर के उदाहरणमें बिक्रीका मतलब यह है कि जायदादका इन्तकाल पूरी तरह से न हुआ हो मसलन् बिक्रीका सिर्फ इक़रार हुआ हो और इक़रारके बाद कोई पुत्र पैदा हो तो मिताक्षराला के अनुसार बंगाल और संयुक्त प्रांतमें वह विक्री सबकी सब मंसूख हो जायगी मगर बम्बई और मदरास प्रांत पुत्र के हिस्से तक मंसूख होगी यानी पुत्रका हिस्साही सिर्फ बरी कर दिया जायगा, देखो - पुनाम बाला बनाम सुन्दरप्पा एय्यर 20 Mad. 354 और देखो ट्रान्स्फर आफ प्रापरटी ऐक्ट १ ८८२की धारा ५४
(२) जयका एक लड़का विजय है, जयने पैतृक जायदाद विजयकीरज़ामन्दी बिना किसी जायज़ ज़रूरत के लिये महेशके हाथ बेंच दी, बेंचने की तारीख से दो वर्ष बाद जयके एक और पुत्र पैदा हुआ बिक्री नाजायज़ थी इसलिये पीछेसे पैदा हुये लड़केके उज्र करने पर बङ्गाल और संयुक्त प्रान्तमें सबकी सब बिक्री, और बम्बई तथा मदरासमें सिर्फ पैदा हुये लड़के के हिस्से तक मंसूख करदी जायगी । लेलिन अगर वह बिक्री विजयकी रजामन्दीसे हुई थी तब वह लड़का कोई उम्र नहीं कर सकता क्योंकि माना जायगा कि वह बिक्री जायज़ थी और अगर उस लड़केको गर्भ में आनेके पश्चात् या पैदा होने के पश्चात् विजयने रजामन्दी दी हो तो उस लड़के का हक़ नष्ट नहीं होताइसी क़िस्मका केस देखो - 33 All 654, 11 W. R. 480.
( ३ ) जय और उसका पुत्र विजय, तथा जयके चाचाका पुत्र राम मुश्तरका खान्दानमें हैं, विजयकी नाबालिगीमें जय और रामने मुश्तरका जायदाद आपस में बांटली अर्थात् जयने कुछ जायदाद रामको देदी इसके पश्चात् जयके दो पुत्र शिव और सेवक पैदा हुये तीनों भाइयों ( विजय, शिव, सेवक ) ने उस जायदाद के वापिस पानेका दावा जय और राम पर किया जो जयने रामको दी थी। तीनों भाइयोंने कहा कि यद्यपि जयने रामको अपने चाचाका दत्तक पुत्र मानकर वह जायदाद दी थी परन्तु वह दत्तक जायज़ नहीं था इसलिये रामको खान्दानकी किसी जायदादपर कोई हक़ नहीं है ( यह साफ़ है कि अगर दत्तक दर असल नाजायज़ है तो उसको इस तरहपर जायदाद का देना भी नाजायज़ है ) इसलिये विजय, शिव, और सेवक तीनों अदालत