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दफा ४५८ ]
इन्तक़ाल मंसूरन करना
दो व्यक्तियों के मध्य समान भाग लेनेका सुलहनामा जायज़ माना गया गौचन्द्रदास बनाम सुवासिनी दासी A. I. R. 1926 Cal 240.
उसके अधिकार रेहननामे की डिकरीपर एतराज करने का अधिकार-नारायन बनाम धूंधाबाई 92 1. C. 663, A. I. R. 1925 Nag. 299.
पितामहके खिलाफ़ डिकरीमें नीलाम -- यदि प्रपौत्र विरोध करे, तो उसे क़र्ज़ को गैर तहज़ीबी साबित करना होगा, बद्रीनाथ बनाम राधा वल्लभ राज जी A. I. R. 1925 Qudh. 199.
पिता के खिलाफ़ डिकरीकी नीलाम, पुत्र के अधिकारपर भी पहुंचती है जब तक कि महाजनको यह न विदित हो कि क़र्ज़ गैर तहजीबी मतलबसे लिया गया था, सत्यनारायन बनाम बिहारीलाल 6 Lah. 1; 52 I. A. 22; (1925) M. W. N. 1; 23 A. L J. 85; L. R. 6 P. C. 1; 21 L. W 375; 27 Bom L. R. 135; 84 I. C. 883; 29 C. W. N. 797; A. I. R. 1925 P. C. 18; 47 M. L. J. 857; (P.C.)
दफा ४५८ जायज़ इन्तक़ालके समय यदि गर्भमें भी पुत्र न हो तो हक़ नहीं है।
जायज़ इन्तकाल के समय यानी जिस समय मुश्तरका खान्दानकी किसी जायदादका इन्नक़ाल किया गया हो वह पुत्र उस समय न तो गर्भमें हो और न जन्मा हो तो वह पीछे पैदा होकर उस इन्तक़ालके मंसूत्र करापाने का दावा नहीं कर सकता, देखो -- राजाराम बनाम लक्षमण 8 W. R. 16, 21 भोलानाथ बनाम कारलिक 34 Cal. 372, 33 All 289.
लेकिन जो इन्तक़ाल नाजायज़ हो अर्थात् बिना जायज़ ज़रूरत के या जो उस वक्त पुत्र मौजूद हों उनकी रजामन्दीके बिना किया गया हो वह इन्तक़ाल, पीछे उन पुत्रोंके उज्र करनेपर और उस पुत्रके भी उज्र करनेपर जो पीछेसे पैदा हुआ है मंसूख किया जायगा लेकिन अगर इन्तक़ालके वक्त जो पुत्र मौजूद हों उन्होंने उस इन्तक़ालको मंजूर कर लिया हो या पीछेसे मंजूर कर लिया हो तो मंसूख नहीं किया जायगा, देखो - 33 All 664,
( १ ) जय, मिताक्षरालों का मानने वाला है उसने एक पैतृक जायदाद महेशको बेच दी, बिक्री के समय जयका कोई पुत्र न तो मौजूद था और न गर्भ में था तथा बिक्री बिना जायज़ ज़रूरतके की गयी थी परन्तु फिर भी वह बिक्री जायज़ है मंसूख नहीं की जा सकेगी क्योंकि ज़रूरत जायज़ या नाजायज़का सवाल उसी वक्त पैदा होता है जब दूसरे कोपार्सनर भी मौजूद हों अगर बिक्रीके दो वर्ष के बाद कोई पुत्र जयके पैदा हो तो वह उस बिक्री को नाजायज़ नहीं ठहरा सकता ।