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मुश्तरका खान्दान
[छटवां प्रकरण
में वह कोपासनर मर जाय तो दूसरे कोपार्सनर सरवाइवर शिपके द्वारा उसके हिस्सेके हक़दार नहीं होंगे फकीरचन्द बनाम मोतीचन्द 7 Bom. 438.
ऐसा मानो कि जय और उसका पुत्र विजय मुश्तरका खान्दानमें हैं, जय दिवालिया हो गया और उसके मरने के बाद आफीशल एसाइनीने जयका हिस्सा बेच दिया जो मुश्तरका खान्दानमें था। विजयने इस बातपर उजुर किया कि जयके मरनेके बाद मुश्तरका खान्दानकी जायदादका उसके हिस्सा परसे श्राफीशल एसाइनीका हक जाता रहा और सरवाइवर शिप द्वारा विजयका हक उसपर कायम होगा। परन्तु बम्बई हाईकोर्टने विजयकी यह धात नहीं मानी देखो ऊपरकी नज़ीर 7 Bom. 438. दफा ४५४ मुश्तरका खान्दान के फर्मका दिवाला
जब मुश्तरका खान्दानके फर्मका दिवाला हो जाय तो नाबालिरा कोपार्सन के हिस्से सहित सब कोपार्सनरोंके हिस्सोंपर आफिशल एसाइनीका हक्क कायम हो जायेगा 26 Mad. 214; 14 Bom. 189.
जब किसी मुश्तरका खान्दानके मैनेजरने, खान्दानके फ़ायदेके व्यवसायमें, किसी पब्लिक टूस्टकी रकमका दुरुपयोग किया हो, तो मुश्तरका खान्दानके मेम्बर मैनेजरके साथ मुश्तरका तरीकेपर और अलाहिदा अलाहिदा भी, वह रकम मय सूद जो वह पब्लिक ट्रस्ट सही तरीकेपर तलब करे, चुकानेके लिये वाध्य है-जैनारायण बनाम प्रयागनारायन (1925) M. W. N. 13; 21 L. W. 162;20. W. N. 15.7; 85 I. C.2; L. R. 6 P.C. 73:27 Bom. L. R.713:29 C W.N.775; 3 Pat. L. R. 265: A. I. R. 1925 P.C. 11; 48 M. L. J. 236 (P.C.)
पिता दिवालिया करार दिया गया-जब किसी हिन्दू मुश्तरका खानदानका मैनेजर दिवालिया करार दिया गया हो, तो उसकी खान्दानी जायदादके मुनासिब कारणोंपर मुन्तकिल करनेका अधिकार, जो उसे दिवालिया होनेके पहिले प्राप्त था, रिसीवर या किसी आफिसके नुमाइन्दाको प्राप्त हुआ नहीं माना जा सकता-श्रीपदगोपाल कृष्ण बनाम बासप्पा रुद्रप्पा 27 Bom. L. R. 934; 89 I.C. 996; 49 Bom. 785; A. 1. R. 1925 Bom 416.
. व्यवसायिक कर्ज-दिवालिया-पुत्रका हिस्सा-जिम्मेदारी-खेमचन्द बनाम नारायणदास सेठी 89 I. C. 1022; 26 Punj. L. R. 848; 6 Lah. 493.
जिमीदारीपर नाम चढ़ा होना-यह एक आम रिवाज़ है, यद्यपि ऐसा नहीं, जो परिवर्तन न किया जा सके, कि मुश्तरका खान्दानकी ज़मीदारीके सम्बन्धमें मालगुजारीके काराजोंमें केवल मैनेजरका नाम दर्ज रहता है। ऐसी