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मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
अधिकारी है, विरोध करनेसे महरूम रखने की ग़रज़से ऐसी रकम दर्ज कराली जाती है-प्यारेलाल बनाम श्री ठाकुरजी L. R. 6 A. 537; 881. C. 964; 23 A L.J.909; A 1. R. 1926 Ail. 79.
पिता द्वारा मुश्तरका खान्दान की जायदाद का बयनामा-पुत्र दस्तावेज़का एक फ़रीक हो--रेहननामेके सुबूतके लिये ज़बानी शहादतपाया ली जा सकती है --रामचन्द्र हनुमन्त बनाम काशीनाथ लक्ष्मण 27 Bou. LR. 241, 87 I. C. 804; A. I. R. 1925 Bom. 288.
अब प्रिवीकौंसिलकी क्या राय है -राजा बहादुर राजा वृजनारायण बनाम मङ्गल प्रसादराय 2 All. L. 1. 934 ( P. C. ) का मुक्तहमा प्रिवी कौसिलसे तय हुआ है और इसी नज़ीरसे उस समय तकका सारा झगड़ा मिट गया । वाकियात यह थे-सीताराम अपने दो नाबालिग लड़कों सहित मुश्तरका खान्दानका मुखिया था । उसने १२ दिसम्बर सन १६०५ ई० और १६ जून सन १९०७ई० को मुश्तरका खान्दानकी जायदाद रेहनकी। इस रेहनसे छुटाने के लिये उसने फिर ता०२४ मार्च सन १९०८ ई० को दसरा रेहननामा रामनरायण और जगदीश प्रसादके हकमें लिखा । इन दूसरे मुरतहनोंने रेहन की एकतरफा डिकरी सीताराम पर सन १९१२ ई०में प्राप्त की। सन १९१३ई० में सीतारामके दोनों नाबालिरा बेटोंकी तरफसे उनकी मां ने एकतरफा डिकरी रद कराने और लड़कों का हक रेहनके मामलेसे साफ करनेका दावा किया । इस दावेमें बाप और दोनों मुर्तहिन मुद्दाअलेह बनाये गये। प्रारममिक अदालत ने दावा डिकरी किया यानी बेटोंका हक बरी किया और लड़कोंका सम्बन्ध जहां तक डिकरीसे था वहां तक उस डिकरीको खारिज कर दिया। हाईकोर्टने फैसला बहाल रखा अर्थात् बापके रेहनका जिम्मेदार लड़कोंको नहीं माना पीछे यह अपील हाईकोर्ट के फैसलेके विरुद्ध प्रिवी कौन्सिलमें किया गया। प्रिवी कौन्लिलके सामने सबसे ज़रूरी प्रश्न यह था कि मुश्तरका खान्दान का पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी कर्जा कौन है ? बापके किये हुये रेहनकी अदायगीके जिम्मेदार मुश्तरका खान्दानकी कुल जायदाद है ? साहू रामचन्द्र बनाम भूपसिंह 42 [. A. 127. वाली नजीरपर पूरी तरहसे विवेचन किया गया और अन्तमें तय हुआ कि बापने पहले पहल जो रेहननामे लिखे वह मौरूसी क़र्जा था और उन दोनों रेहननामोंके अदा करने के लिये दूसरा रेहननामा, इसलिये दूसरे रेहनका रुपया अदा करने की जिम्मेदारी मुश्तरका जायदादपर है जिसमें लड़कोंका हक़ शामिल है।
पहलेकी नजीरोंमें प्रिवी कौन्सिलकी यह राय थी कि बापने अगर पहले पहल रेहन कर दिया हो तो वह मौरूसी क़र्जा नहीं माना जायगा और इसी रायपर हज़ारों मुक़द्दमें फैसल होगये हैं अब नयी इस नजीरने पहले का सादा कानून बदल दिया। इस ग्रन्थके छपने के समय उपरोक्त बात मानी जाती है इस नजीरको ध्यानमें रखना चाहिये।