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दफा ४३६-४४०]
अलहदी जायदाद
__ अब ऐसा मानों कि कन्ट्राक्टके मामलेमें फरीक होनेके कारण वरुण को, महेश और शिवकी ज़ातपर भी डिकरी मिल सकती है, ऐसी डिकरी वह महेश और शिवकी अलहदा जायदादपर भी, जारी करा सकता है परन्तु गणेशकी जातपर डिकरी कभी नहीं पासकता चाहे गणेश बालिग्न भी होता क्योंकि गणेश उस कन्ट्राक्टमें शरीक न था।
(३) हालमें एक मुकद्दमा इस किस्मका हुआ है कि जिसमें मुश्तरका खान्दानके मेनेजरपर एक गैर मनकूला जायदादके बैबातकी डिकरी हुई, उस मुक़दमे में दूसरे कोपार्सनरोंने अदालतमें यह उज्र पेश किया कि चूकि वे उस मुक़द्दमेमें मुद्दाअलेह नहीं बनाये गये थे इसलिये मुश्तरका खान्दानकी जाय. दादका उनका हिस्सा उस डिकरीका पाबन्द नहीं होना चाहिये। प्रिवीकौंसिल के जजोंने यह राय दी कि वह पाबन्द हैं यद्यपि फरीक नहीं बनाये गये थे। जजोंने फरमाया कि “हिन्दुस्थानी नजीरोंको देखते हुये और जिनसे हमारा मतभेद नहीं है इस बातमें कोई सन्देह नहीं मालूम होता कि बैबातके मुकदमे सहित कितनेही मामलोंमें मुश्तरका खान्दानके मेनेजर खान्दानकी तरफसे ऐसी पूरी तरहसे काम करते हैं कि उससे सारे खान्दानका पाबन्द होना समझा जाता है वर्तमान मुक़दमे में भी यही सिद्धान्त लागू होना चाहिये इस मामलेमें ऐसा समझने का कोई कारण नहीं है कि मेनेजरोंने खान्दानके लिये काम नहीं किया" टान्सफर आफ प्रापर्टी एक्ट सन १८८२ ई० की दफा ८५ और ज़ाबता दीवानीके आर्डर ३४ रूल १ का कोई प्रश्न इस मामलेमें नहीं उठता क्यों कि रेहन रखने वालेको रेहन रखते समय इस बातकी सूचना कोई नहीं मिली थी कि मुंबईका भी हक़ उसमें शामिल है। देखो-शिवशङ्कर बनाम जाधोकुंवर 41 I. A. 216; 36 All. 383. 33 All. 71. . दफा ४४० बापके ज़ाती कर्जेकी डिकरी
मुश्तरका खान्दानके मेनेजरके ज़ाती कर्जेकी डिकरी, खान्दानके दूसरे लोगोंको पाबन्द नहीं करती। लेकिन अगर मेनेजर बाप हो तो उसके ज़ाती कर्जेकी डिकरीक पाबन्द उसके लड़के पोते, परपोते, भी होते हैं मगर वह सिर्फ मुश्तरका जायदादके अपने हिस्से तक पाबन्द माने गये हैं। यह बात इसलिये कानूनमें मानी गयी है कि हिन्दू धर्म शास्त्रानुसार पुत्र और पौत्र अपने पिता और पितामहके कर्ज देनेके पाबन्द माने गये हैं मगर शर्त यही है कि वह क़र्ज़ जायज़ ज़रूरतके लिये लिया गया हो। यह कायदा प्रपौत्र और प्रपितामह या अन्य किसी कुटुम्बीके दरमियानमें लागू नहीं होता।
पिता द्वारा कर्ज गैर तहज़ीब-जब किसी ऐसी डिकरीकी तामीलमें, जो केवल पिताके खिलाफ हो, संयुक्त परिवारकी जायदाद नीलाम की जा रही हो, तो पुत्र उस डिकरीसे तब तक छुटकारा नहीं पा सकते, जब तक
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