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मुश्तरका खान्दान
[ छटवां प्रकरण
ज़रूरतोंके लिये जो मुनासिब समझे करे, रामलाल बनाम लखमीचन्द 1 Bom. H C Appli. के मुक़द्दमें में बम्बई हाईकोर्टने कहा कि मेनेजरके मुश्तरका खान्दानी व्यापार चलाने के अधिकारमें, व्यापारके साधारण कामों के लिये मुश्तरका खान्दानकी जायदादको रेहन करनेका अधिकार भी अवश्य बिना दिये हुये भी माना जायगा, श्यामसुन्दर बनाम अछनकुंवर 21 All. 71. वाले मुक़द्दमे में प्रिवी कौन्सिलने कहा कि-मुश्तरका खान्दानके व्यापार के मेनेजरने, घरके दूसरे मेम्बरोंकी रजामन्दी न लेकर खासकर जब उस खान्दानमें नाबालिरा मेम्बर भी हैं कोई जायदाद रेहन रखी हो तो उसका यह रेहन रखना जायज़ था या नहीं इस बातके जांचनेके लिये केवल यह जानना चाहिये कि वह मुश्तरका जायदादके क़रज़ चुकाने के लिये रेहन रखी गयी थी या नहीं ? जायदादके इन्तकालके समय जो बालिग कोपार्सनर मौजूद हों उनकी रजामन्दी लेना परमावश्यक है मगर उन बालिग कोपार्सनरोंकी रजामन्दी लेना इतना आवश्यक नहीं है जो परदेश चले गये हों।
जबकि खान्दानकी ज़रूरतोंके लिये इन्तकाल न किया गया हो तो कोई कोपार्सनर उस इन्तकालका पाबन्द नहीं होगा; देखो-35 Mad. 177.
अगर रेहननामा या बैनामा या किसी इन्तकालके काराज़पर बालिग कोपार्सनरोंने दस्तखत कर दिये हों तो वह उनकी मंजूरी समझी जायगी; देखो-गङ्गाबाई बनाम वामनाजी 2 Bom. H. C. 30; 35 Mad 177. जब कि खान्दानकी ज़रूरत काफ़ी न हो और न बालिग कोपार्सनरोंकी रजामन्दी हो तो मेनेजर मुश्तरका जायदादका इन्तकाल नहीं कर सकता। दफा ४३० मुश्तरका खान्दानकी कानूनी ज़रूरतें ( मुश्तरका खानदानकी कानूनी जरूरतें यह होती है ) (क) (१) सरकारी मालगुज़ारी देना, और मुश्तरका खान्दानकी जाय
दादके ऊपर जो करजे देने हों उनको अदा करना; देखो-25 All. 407, 414-115; 30 I. A. 165; नाथू बनाम कुन्दन
33 All. 242; 29 Cal. 797. जबकि मालगुजारीका तकाज़ा छाती पर चढ़ा हुआ था यहां तककि जिस दिन रेहननामा किया गया, उस दिन स्थावर सम्पत्ति पर कुर्की जारी करदी गई थी।
तय हुआ कि रेहननामा कानूनी प्रावश्यकताके लिये था। सागरसिंह बनाम मथुराप्रसाद 87 I. C. 1035; A. I. R. 1925 Oudh 750. (२) कोपार्सनरों और उनके बाल बच्चोंका भरण पोषण करनाः देखो
मकुन्दी बनाम सरवसुख 6 All. 417, 421.