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दफा ४२७ ]
मालूम पड़ सकती हो तो उसे मुश्तरका खान्दानकी कुल जायदादपर डिकरी नहीं दी जायगी; देखो - सोहरू पद्मनाथ बनाम नारायणराव 18 Bom. 52C; 21 Bom. 808; 5 Cal. 321.
अलहदा जायदाद
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कलकत्ता और इलाहाबाद हाईकोर्टने माना है कि यही क़ायदा जो ऊपर कहा गया है मुश्तरका खान्दानके कारोबार के वास्ते जो क़रज़ा लिया जायगा उसमें भी लागू होगाः देखो-नगेन्द्र बनाम अमरचन्द्र 7 Cal. W. N. 725. गनपतराय बनाम मुन्नीलाल ( 1912 ) 34 All, 135 किन्तु बम्बई हाईकोर्टने इसके बिल्कुल बरखिलाफ माना है अर्थात् बम्बई हाईकोर्टने माना कि क़रज़ा देने वालेको इस बातके पूछने की कोई ज़रूरत नहीं है कि क़र्ज़ किसी वास्तविक ज़रूरत के लिये लिया जाता है या नहीं इत्यादि, हर तरहपर उसके क़र्ज़ की जिम्मेदार मुश्तरका जायदाद होगी; देखो - रघुनाथजी बनाम दि बैंक आफ बम्बई (1909 ) 34 Bom. 72. शङ्का बनाम दि बैंक आफ बरमा (1912) 35 Mad. 692, 694,696.
वह क़र्ज़ जो किसी ऐसी नालिशके सम्बन्धमें दिया गया हो, जिसमें कामयाबी न हासिल हुई हो; और वह नालिश उस वासलात मुनाफ़ाके बिना पर हो जो किसी शसके जायदादपर नाजायज़ क़ब्ज़ा रखनेके कारण प्राप्त हो, नाजायज़ नहीं है, शम्भू भानसिंह बनाम चन्द्रशेखर बक्स सिंह A. I. R. 1925 Oudh 130.
वासलात मुनाफाकी डिकरी, जो जायदादपर नाजायज़ क़ब्ज़ाके मुनाफ़ा के बिनापर हो, पिताकी मृत्युके पश्चात्, उस पैतृक जायदादपर, जो पुत्र के अधिकारमें हो, उसकी तामीलहो सकती है, शम्भू भानसिंह बनाम चन्द्रशेखर बक्ससिंह A. I. R. 1925 Oudh. 230.
तीन हिन्दू भाइयों में से, जो कि साझेदार वारिस थे, एक भाईने, एक ऐसे दावेपर, जो कि तमाम वारिस साझीदारोंकी ओरसे, एक तीसरे व्यक्ति पर था, कुछ जायदाद प्राप्त की । इस प्रकार जायदाद प्राप्त करनेमें, प्राप्त करने वाले भाई ने, उस साझेके कर्जदारसे यह वादा कर लिया कि यदि किसी दूसरे भाईके दावेके कारण, उसे कोई नुक़सान होगा, तो वह उसका जिम्मेदार होगा ।
तय हुआ कि नुकसानका मावज़ा पूरा करनेके लिये, जो क़र्ज़ लेना पड़ा, वह न तो ग़ैर क़ानूनी था और न गैर तहज़ीबी । मातादीन बनाम महराजदीन 12 O L. J. 33; 85 I. C. 959; A. I. R. 1925 Oudh. 325.
पितृव्य ( चचा) द्वारा क़र्ज लिया हुआ जायज़ हो सकता है, चितनवीस बनाम नाथू साऊ A. I. R. 1925 Nag..