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みりみ
मुश्तरका खाम्दान
[ छठवां प्रकरण
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फारखनीनामा और अधिकार - एक हिन्दू (अ) के (क), (ख) और (ग) तीन पुत्र थे । सबले पहिले (क) खानदान से अपना हिस्सा लेकर अलाहिदा हुआ । और एक फा खनीनामा लिख दिया । उसी प्रकार ( ख ) और (ग), तीन वर्ष के पश्चात् अलाहिदा हो गये। सबसे पहिले (ग) एक पुत्रको, जोकि भुई है, छोड़कर मरा । (क) उसके बाद एक विधवा छोड़कर मरा। तत्पश्चात् ( अ ) और अन्तमें ( ख ) एक विधवा छोड़कर मरा । मुद्दईने नालिश जायदाद पर की, इस कारण पर दावा किया है कि वह अपने पिताकी मृत्युके पश्चात् ( अ ) के साथ रहता था या इसके अतिरिक्त उसने उस जायदाद को अपने चचा (ख) से उसकी मृत्युके पश्चात् वरासतसे प्राप्त किया है ।
तय हुआ कि (१) महज़ (ग) के वयानोंसे, कि १६०७ में (अ) और (क) मुश्तरका थे, न तो वे दुबारा मुश्तरका होते हैं और न उनका मुश्तरका होना साबित ही होता है चाहे इसका प्रतिपादन किसी प्रत्यक्ष शहादत द्वारा भी क्यों न हो ( २ ) मुद्दई के मुताल्लिक, यद्यपि उसके पिता के फारखतीनामाके द्वारा उसके अधिकारका त्याग नहीं होता, क्योंकि उसके पित ने अपना हिस्सा पाया था, और उसे कुछ खानदानी क़र्ज़ से भी छुटकारा (मुक्ति) मिली थी, aagarरेकी पावन्दी उसपर तबतक होगी, जस्तक कि वह धोखेबाजी या और किसी मान्य कारणसे मंसूख न हो ( ३ ) यह कि इस प्रकारके मुश्तरका वारिस बटवारेके पश्चात् मुश्तरका क़ब्जा प्राप्त करते हैं दकीयत सि जुमल नहीं, और चूंकि यह मुद्दई और (ख) ने (अ) की जायदाद आधी आधी है अतएव (क) और (ख) की विधवाओं का अपने पतियोंके भिन्न भिन्न हिस्सोंपर अधिकार प्राप्त है । जादव बाई बनाम मुल्तान चन्द 27 Bom L. R. 425; 87 I. C. 93; A. I. R. 1925 Bom. 350.
अलाहिदा जायदाद का मुश्तरका जायदादमें तबदील किया जानामन्दी सरवाई बनाम सनधानम् सरवाई AIR 1925 Mad. 303.
नानाले मिनी जायदाद - वह जायदाद जो किसी व्यक्तिको अपने नाना से प्राप्त होती है, उसकी हैसियत, उसके कब्ज़े में, बतौर पूर्वजोंकी जायदाद के नहीं होती । सुत्रह्मण्य अप्पा बनाम नल्ला कवन्दन - ( 1926 ) M. W. N. 291(1; A. I. R. 1926 Mad. 634.
नोट — यह नहीं समझ लेना चाहिये कि कोपार्सनरी हरएक जायदाद कोपार्मनरी हैं । मुश्तरका नानक आदमीकी अपनी अलहदा जायदाद भी हो सकती है और वह जायदाद उसके अधिकारमें रहती है, इम तरह बहुत तरहकी जायदादें जो ऊपर बताई गयी हैं अलहदा जायदाद है | अलहदा जायदाद को अपी कमाई हुई जायदाद भी कह सकते हैं, तथा अपनी हामिलकी हुई जायदाद भी उमी अर्थ में है । यह वह जायदाद कि जिसका कोई हिन्दू मझरका जायदादको हानि पहुंचाये बिना प्राप्त करें । ऊपर नम्बर १. २, ३ में जा अलदा जायदाद बतायी गयी है उन के बांग्में यह नहीं कहा जा कता कि
का जायदाद की मदद से या खर्चस प्राप्त की गयी है ऐसी जायदाद खुद कमाई हुई जायदाद कह