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दफा ४१८]
अलहदा जायदाद
___ एक सदस्य द्वारा खरीदी हुई जायदाद-जब किसी मेम्बरने कुछ जायदाद अदालतकी नीलाममें खरीदी, जबकि डिकरीदार, नीलाममें खरीदने वालेका मुश्तरका भाई है और जबकि यह बयान किया गया है कि खरीदार डिकरीदारका बेनामीदार है-तय हुआ कि यह मानते हुए भी कि वे मुश्तरका खानदानके भाई हैं यह हर हालतमें मानना आवश्यक नहीं है कि एक भाई दूसरे भाईके लिये अवश्य ही जायदाद खरीदे, यह मुद्दाअलेहकी जिम्मेदारी है कि वह इस बातको सावितकरे किं खरीदार डिकरीदारकाबेनामीदार था। वेट राम चट्टी बनाम मारुत अप्पा पिल्ले 21 L. W. 226; 86 I. C. 886 (1) A. I. . 1925 Mad. 448.
वेश्याकी खुद कमाई हुई जायदाद-जबकि तीन वेश्याये साथ साथ रहती हैं, किन्तु उनमेंसे केवल एक ही धनोपार्जन करती है, तो ऐसी अवस्था में कमाने वाली वेश्या द्वारा अपने नामसे मकान खरीदने में यह नहीं समझा जासकता, कि वह समस्त परिवारके लाभके लिये है, जबकि इस बात साबित करने के लिये कोई सुबूत न हो कि घर खरीदने में कुछ संयुक्त कोष खर्च किया गया है। तओर कन्नाम्मल बनाम तोर रामतिलक अमालः A. I. R. 1927 Mad. 38.
यह बात इस सिद्धांतपर निर्भर है कि जब कई एक वेश्याएं साथ साथ रहती हों और उनमेंसे कुछ अपनी वृद्धावस्थाके सबबसे और कुछ अन्य शारीरिक अयोग्यताके सबबसे अपने पेशेसे कमाई न करती हों, लोगोंसे उन्हे धन न मिलता हो, लोग उन्हे पसंद न करते हों और उनमेंसे एक ही की आमदनीले सबकी परवरिश होती हो ऐसी हालतमें उस कमाने वाली वेश्याके नामसे जो जायदाद खरीदी जायगी तो अदालतको यही अनुमान होगा कि वह जायदाद उसकी निजकी है। यह प्रश्न उस समय जटिल हो जायगा जबकि उनमेंसे कई एक कमाती हों, रुपया शामिल रहा हो. अन्य कारोबार भी शामिल हो पर किसी वुढ़िया वेश्याने अपनी कमाईका बड़ा भाग उस सुंदरी वेश्याके सौंदर्य आदि बनानेमें खर्च किया हो और उसकी श्रामदनी होती हो।
किसी हिन्दू संयुक्त परिवार के सम्बन्धमें, जिसके अधिकार में कोई संयुक्त पारिवारिक जायदाद हो, प्रत्येक वातसे परिणाम निकाला जासकता है कि वह जायदाद मुश्तरका है तओर कन्नाअम्मल बनाम संजोरराम तिलक अम्मल. A. I. 3. 1927 Mad. 38.
एक सदस्य द्वारा अधिकृत जायदादकी सूरतमें संयुक्त परिवारकी कल्पना नहीं हो सकती. यदि पारिवारिक केन्द्र न साबित किया जाय । तंजोर कन्नाअम्मल बनाम तंजोर रामतिलक अम्मल A. I. R. 1927 Mad. 38.
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