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[ छठवां प्रकरण
मुश्तरका खान्दान
कोपार्सनरी जायदादमें हक़ नहीं मिलेगा क्योंकि वह कोपार्सनर नहीं हो सकता देखो - रामसहाय मुकट बनाम लालजी सहाय 8 Cal. 149; 9 C. L. R. 457; रामसुंदर राय बनाम रामसहाय भगत 8 Cal. 919.
बङ्गाल हाईकोर्टकी रायके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्टने यह माना है कि- जब किसी पुरुषको कोपार्सनरी जायदाद में जन्मसे हक़ एक दफा पैदा हो जाय और उसके बाद उसे शारीरिक अयोग्यता आगई तो अब उस अयोग्यताको आज उसकाहक नहीं मारा जायमा । त्रिवेणी सहाय बनाम मोहम्मद उमर ( 1905 ) 28 All 247.
जब किसी आदमी को अपनी अयोग्यता के सबब से जायदाद में हक नहीं मिला हो तो, जब उसकी अयोग्यता चली जायगी तब वह अपने
के पाने का दावा कर सकता है। देखो - मिस्टर मेनसाहेबका हिन्दूलॉ पेज ६५५; और भट्टाचार्य्यका ज्वाइन्ट फेमिली लॉ ३१६, ३६७, ४११, ४१४, इस तरहसे हक़ मिलनेके बाद अगर अयोग्यता आगई हो तो फिर वह हक नहीं चला जायगा ।
जब किसी आदमीको अयोग्यताके सबबसे उत्तराधिकार और कोपार्सनरी जायदाद में हक़ नहीं मिल सकता तो इस बातकी मनाही नहीं है कि उस अयोग्य आदमीके नाम किसी जायदादका बनशीश पत्र आदि न किया जाय अर्थात् किया जासकता है। देखो गङ्गासहाय बनाम हीरासिंह 2 All. 809; कोर्ट आफ् वास बनाम कुवलसिंह 10 B. L. R. 364. दफा ४०६ अयोग्यता के साबित करनेका भार किसपर होगा
जब किसी मुकद्दमे में किसी आदमीकी शारीरिक योग्यता क्यान की गई हो तो उस अयोग्यता के साबित करनेका भार उस पक्षपर निर्भर है जिसने उसे बयान किया हो । देखो - हेलनदासी बनाम दुर्गादास 1 C. L. J. 323; फटीकचन्द्र चटरजी बनाम जगतमोहिनी देवी 22 W. R. C. R. 348;
न्द्रमनी देबी बनाम क्रिष्टचन्द्र मजूमदार 18 W. R. C. R. 375; ईश्वर चन्द्रसेन बनाम रानीदासी 2 W. R. C. R. 125; नलिनचन्द्रगुहो बनाम भगाला सुन्दरी दासी 21 W. R. C. R. 249; 21 I. A. 94.
दफा ४०७ मरा हुआ माना जायगा
जिस किसी आदमीका हक़ कोपार्सनरी जायदादमें नहीं है और मह कोपार्सनर नहीं हो सकता, तो इसका मतलब यह लगाया गया है कि मानो आदमी मर गया। देखो - बापूजी लक्ष्मण बनाम पाण्डुरंग 6 Bom, 616,
बीरमित्रोदय, ८-६.