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नाबालिंगी और वलायत
[पांचवां प्रकरण
गया हो अकेले ही नाबालिग़ का वली बना सके या उसको माता द्वारा नियुक्त किये हुये वलीके साथ संयुक्त वली बनासके ।
(४) नाबालिग़ की ज़ात व जायदाद के लिये भिन्न २ वली बनाये या घोषित किये जा सकते हैं ।
(५) यदि नाबालिग की भिन्न २ जायदादें हों और अदालत यदि मुनासिब समझे तो उन जायदादोंके लिये भिन्न २ वली नियुक्त या घोषित कर सकती है। -दफा १६ अदालतकी आधिकार सीमासे बाहर जायदादके
क्लीकी नियुक्ति या घोषणा यदि अदालत अपने अधिकार सीमासे बाहर की जायदाद के लिये वली नियुक्त या घोषित करे तो वह अदालत भी जिसके अधिकार सीमा में जायदाद होगी उस वलीको स्वीकार करेगी तथा नियुक्त करने वाली अदालत के हुक्म को मानेगी जबकि उस अदालतको पहिली अदालतके हुक्मकी ज़ाबतेसे ली हुई नकल दिखलाई जावेगी। -दफा १७ वहबातें जिन्हें अदालतको वली नियुक्त करते
समय देखना चाहिये (१) नाबालिराका वली नियुक्त या घोषित करते समय यदि अदालत को उसकी भलाई के लिये उस अवसर पर कोई बात उचित प्रतीत हो तो वह उसको उस हद तक कर सकेगी जिस हद तक इस दफामें दिया हुआ है परन्तु उसको ऐसा करते समय उस कानूनका ध्यान रखना चाहिये जो कि नाबालिग की जाति के लोगोंके लिये लागू है।
(२) अदालतको नाबालिग की भलाई के लिये नाबालिगकी अवस्था संज्ञा तथा धर्म का ध्यान रखना चाहिये। वली बनने वाले व्यक्तिका आचरण व योग्यता तथा नाबालिरासे निकट सम्बन्धका भी ध्यान अदालतको रखना उचित है। मृत माता पिताकी इच्छाका भी ध्यान रखना चाहिये यदि कुछ रही हो और यदि वलीका नाबालिरा या उसकी जायदादसे कोई सम्बन्ध पहिले रहा हो या अब हो तो उसका भी ध्यान अदालत रक्खे।।
(३) अदालतको भी अधिकार है कि यदि नाबालिरा काफ़ी सयाना हो तो उसकी भी इच्छाका ध्यान वली चुनने में रख सकती है।
(४) अगर नाबालिग यूरोपियन ब्रिटिश रिाया है और उसके माता पिता दोनों उसकी जातके वली बनना चाहते हैं तो ऐसी सूरतमें उन दोनोंमें से किसीको विशेष रूपसे चली बननेका अधिकार नहीं है।