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नाबालिगी और वलायत
[पांचवां प्रकरण
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165, 169; हनूमान प्रसाद बनाम मुसम्मात बघुई 6 M. I. A 393; सुरेन्द्र बनाम नन्दन 21 W. R. 196.
(४) जिस मुश्तरका खानदान में बालिग्न और नाबालिग दोनों मौजूद हों, ऐसी सूरत में ऊपर कहे हुए नियमों के अनुसार अगर जायदाद बैंची गई हो या रेहन की गई हो तो उसके पाबंद बालिग और नाबालिग्न दोनों होंगे; देखो--श्याम सुंदर बनाम अचन कुंवर 21 All. 71.
उदाहरण--जय और विजय दोनों भाई हैं दोनों खानदान मुश्तर का के मेम्बर हैं, जय शिक्षा पाने के लिये वलायत चला गया, विजय को खानदान के लाभ के लिये कारोबार करने की ज़रूरत पड़ी और बहन की शादी आवश्यक हुई, उसने दोनों कामों के लिये बिला मंजूरी जय के जायदाद बेच दी या रेहन करदी। जय उस का पाबंद है। दफा ३४७ बली या मैनेजर जायदाद कब बेंच सकता है
शामिल शरीक हिन्दू परिवार के लाभ के लिये, अगर किसी रोज़गार करने की ज़रूरत हो, या लड़की की शादी करना हो, या चलते हुए कारोबार का कर्जा अदा करना हो, या अन्य कोई मज़हबी काम, जिसे करना परिवार पर फर्ज हो करना हो, तो ऐसी खास सूरतों में, बली या मैनेजर जायदाद को बैंच या रेहन कर सकता है जिसकी पाबंदी बालिग और नाबालिग्न मेम्बरों पर एकसां होगी और यह साबित हो कि किसी दूसरी गरज़ से, अथवा दूसरे के लाभ पहुंचाने के लिये, या ऐसा करने से, करने वाले का उद्देश कुछ और था जिसका असर खानदान के विरुद्ध पड़ता है या पड़ सकता है तो दूसरी सूरत होगी। अगर परिवार के लाभ के लिये रोज़गार करने की गरज़ से कोई कर्जा लिया गया हो उसका अदा करना खानदानी ज़रूरत है। देखो-राम लाल बनाम लक्ष्मी चन्द 1 Bom. H. C. app. श्याम सुन्दर बनाम अचन कुंवर 21 All, 71, 83; 25 I. A. 183.
जहां पर खानदान के कारोबार के कर्जा देने के लिये जायदाद बेची गई हो या रेहन की गई हो वहां पर यह मान लिया जायगा कि उनकी मंजूरी है, जो भी उन्हों ने नहीं दी। देखो--ऊपर की नज़ीर-श्याम सुन्दर बनाम अचन कुंवर 21 All. 71, 83; 25 I. A. 183. माना गया है कि यदि मुश्तरका खानदानका कोई कारोबार चल रहा है और उस के मैनेजर ने लाभ के लिये कोई जायदाद बेच दी हो या रेहन कर दी हो, चाहे वह बिला मंजूरी बालिरा मेम्बरों के की गई हो, और उस खानदान में अज्ञान बालक भी हों दोनों सूरतों में दस्तावेज़ के जायज़ करने के लियेअदालत में यह साबित करना ज़रूरी होगा कि वह जायदाद जो बेची गई भी या रेहन की गई थी कारोबार के कर्जा देने के लिये की गई थी जिसकी