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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
अनुसार हो जाता। देखोः-भुवनमयी बनाम रामकिशोर ( 1865 ) 10 M. I. A. 279, 310 S. C.3 Suth ( P. C.) 15 इसी तरहके और भी फैसले हैं देखो - पद्मकुमारी बनाम कोर्टस् आफ्वार्डस् ( 1881 ) 8 Cal. 3027S. 1. A. 229 थैय्यामल बनाम वेंकटराम ( 1887) 10 Md. 205.14 1. A. 67; ताराचरन बनाम सुरेशचन्द्र ( 1889 ) 17 Cal. 122; 16 I. A. 166; अम्मावा बनाम महदगौड़ ( 1896 ) 22 Bom. 416. दफा ३०१ बद्रीदास बनाम रुकमाबाईका मुकदमा
बम्बई में एक फैसला हुआ जिसमें वाकियात मुकदमेमें और तरहपर मे । बम्बईकी नज़ीरके वाक्रियात इस तरहपर थे
सोभाराम
रुकमाबाई (विधवा-प्रतिवादी) सुरजाबाई (विधवा)
बद्रीदास ( दत्तक पुत्र-वादी) खामदान शामिल शरीको सोभाराम और श्रानन्दराम दो सगे भाई है। आनन्दराम पहिले मरगया और सुरजाबाई विधवा को छोड़ा। पीछे सोभाराम मरा और रुकमाबाई विधवाको छोड़ा, सुरजाबाईने सोभारामके मग्नेपर बद्रीदासको अपने पतिके लिये गोद लिया जिसने रुकमाबाई के मुकाबिलेमें जायदाद पानेका दावा किया। यह स्मरण रहे कि बम्बई प्रान्तमें विधवा बिना पतिके सपिण्डों की आज्ञासे गोद ले सकती है। हाईकोर्टने फैसला किया कि दावा मुद्दई खारिज होवे। यह माना गया कि अविभक्त परिवारमें जब आनन्दराम पहिले मरा तो उसकी जायदाद उसके भाई सोभा रामको पहुंच गयी। सोभाराम दोनों की जायदादका अकेला वारिस हो गया, और जब सोभागम मरा तो उसकी जायदाद रुकमाबाईको प्राप्त हो चुकी थी, इस लिये दत्तकपुत्र जायदाद वापिस नहीं ले सकता है जो सिद्धान्त भुवनमई बनाम रामकिशोर 10 M. I. A. 279; के मुकदमे में माना गया था कि जब जायदाद किसी वारिसको पहुंच जावे तो दत्तकसे उसका अधिकार नष्ट नहीं होता वह सिद्धान्त भी इसमें लागू किया जा सकता है देखो--5 Bom H. C. (A. C. J.) 181. दफा ३०२ विधवा अपनेलिये लड़का गोद नहीं लेसकती
यह कहा जाचुका है कि हरएक पुरुष दत्तकले सकता है अगर वह दत्तक अन्य सब बातोंसे योग्य हो, उसकी विधवा भी पतीके लिये दत्तक लेसकती है