________________
दफा २६५]
दत्तक सम्बन्धी अन्य ज़रूरी बातें
करार दिया गया कि ऐसा दत्तक लेने का अधिकार देना ही नाजायज़ था इस लिये दोनों दत्तक पुत्र नाजायज़ हो गये । यद्यपि इस मुकदमे में अन्य बातों पर भी विचार किया गया है मगर यह साफ है कि ऐसा अधिकार जैसाकि रामलाल ने दिया अयोग्य था देखो-आखुचन्द्र बनाम कलाफर (1885 ) 12 Cal. 406; 12 I. A. 198; सुरेन्द्रो बनाम दुर्गासुन्दरी (1891) 19 Cal 513; 19 I. A. 108 और देखो दफा १३१ से १३७.
(८) जब वसीयत, या हिबा गोद लेने से पहिले, किया गया हो-जब कोई वसीयत या हिबा (मृत्यु पत्र अथवा दान पत्र ) किसी लड़के को इस इच्छा से किया गया हो कि वह लड़का दत्तक लिया जायगा और जायदाद उसको पहुंच जायगी । मगर लिखने के समय दत्तक न लिया गया हो उसके मरने के पीछे अगर वह गोद नाजायज़ हो जाय तो उसको वसीयत या हिबा के अनुसार भी जायदाद नहीं मिलेगी। क्योंकि उस लिखत और उसके सब सम्बन्धों से यह देखा जायगा कि देने वाले की खाहिश कैसी थी यदि यह साबित होकि देने बाले की इच्छा दत्तक के आधार पर, 'न थी, तो वसीयत या हिबा जायज़ होगा, अगर दत्तक के आधार पर साबित हो तो नाजायज़ होगा इसी तरह पर जब कोई ऐसे लड़केके हकमें वसीयत कर गया हो जिसे वह गोद लेना पसंद करता था और वह दत्तक न लिया गया हो तो वह वसीयत और हिबा ना जायज़ होगा-देखो-मुल्ला हिन्दूलॉ एड़ी, दूसरा पेज ४०६ दफा ४२६.
ऊपर के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक विषय की भिन्न भिन्न नज़ीरें देखो वसीयत करने वाले की इच्छा, वसीयत नामा की तहरीर और उस पुरुष के तमाम अन्य सम्बन्धों से विचार की जायगी और साबित हो सकेगी-फरीन्द्र देव बनाम राजेश्वर ( 1184 ) 11 Cal. 463; 12 I. A. 72, P. 893 अगर वसीयत इस आधार पर कीगई हो कि लड़का दत्तक लिया जायगा, और दत्तक पुत्र की हैसियत से जायदाद उसे दीगई हो तो दत्तक नाजायज़ होने की सूरत में वसीयत भी नाजायज़ होगी देखो-निधोमनी बनाम सरोदा ( 1876 ) 26 W. R. 91; 3 I. A. 253 वीरेश्वर बनाम अर्द्धचन्द्र ( 1892) 19 Cal: 452; 19 I. A. 101; सुब्बा रायर बनाम सुब्बामल (1900) 24 Mad. 214, 27 I. A. 162, मुरारीलाल बनाम कुन्दनलाल ( 1909 ) 31.All. 337, अगर वसीयत किसी पसंद किये हुये लड़के के हक में यह मानकर किया गया हो कि वह लड़का गोद लिया जावेगा। अगर किसी तरह से गोद न लिया गया तो वसीयत नाजायज़ होगी देखो-सुरेन्द्रो बनाम दुर्गा सुन्दरी ( 1892 ) 19 Cal. 523; 19 I. A. 108, लाली बनाम मुरलीधर (1906 ) 28 All. 488; 33 I. A. 97, बिल्कुल इसी तरह का केस देखो-करमसी बनाम कृष्णदास (1898 ) 23 Bom. 271.