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दफा २७२-२७४ ]
दत्तक लेने का फल क्या है
के उत्तर भागमें यही माना जाता है । बाबू श्यामाचरण कहते हैं कि बङ्गाल में भी केवल शूद्रोंमें यह बात मानी जाती है ऊंचे दरजेकी क़ौमोंमें नहीं मानी जाती- देखो राजा बनाम सव राया 7 Mad. 253 हनूमानतम्मा वनाम राम रद्दी 4 Md. 272 मदरास हाईकोर्टने यहभी माना है कि जब जायदाद अगर कोई ऐसी हो जो तक़सीम नहीं हो सकती, तो वह औरस पुत्रहीके हक़ में आवेगी देखो -- रामासामी बनाम सुन्दरा लिङ्गसामी 17 Mad. 435.
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(२) मि० घारपुरे कीराय -- घारपुरे हिन्दूला तथा मुल्ला हिन्दूलॉ का सिद्धांत भी यही है कि, शूद्रोंमें सब लड़के बराबर भाग पानेके अधिकारी हैं अगर और कोई बात इसके विरुद्ध न हो-- देखो घारपुरे हिन्दूलॉ पेज ६५. दफा २७३ असली लडके की मौजूदगी में दत्तक पुत्रके लड़के का हिस्सा
जब दत्तकके पश्चात् असली लड़के पैदा होगये हों और बापके मरनेके बाद तथा जायदाद में हिस्सा पानेके पहिले दत्तकपुत्र एक लड़का छोड़कर मरे गया हो तो, दत्तकके लड़केका जायदादमें भाग पानेका अधिकार उससे ज्यादा नहीं होगा जितना कि, उसके बापको था और अगर दत्तकपुत्र एकसे अधिक लड़के छोड़कर मरा हो तो सब लड़के बराबर के अधिकारी होंगे जितना कि हक़ उनके बापका रहा हो ।
उदाहरण -- शिवलालने अमृतको गोद लिया और पीछे उसके गणेशलाल, गणेशदत्त, गणनाथ तीन लड़के पैदा हुए। अमृत के दो लड़के पैदा हुए एक रामगोपाल, दूसरा रामानन्द । अमृत शिवलालके मरनेके बाद मरगया । अब जायदाद इसतरहपर तक़सीम होगी कि बंगाल स्कूलके अनुसार रामगोपाल और रामानन्दको कुल जायदादका सातवां भाग और बनारस स्कूल केअनुसार दसवां भाग तथा मदरास व बम्बई स्कूल के अनुसार तेरहवां भाग मिलेगा अर्थात् जो भाग उनके पिताको मिलता वही भाग इनको मिलेगा उस भागमें दोनों बराबर के हिस्सेदार होंगे। अगर अमृतने पहिले किसी लड़केको गोद लिया होता और पीछे उसके असली लड़काभी पैदा होगया होता तो जो भाग अमृत को मिलना चाहिये था उस भाग में स्कूलोंके अन्तर्गत उसी तरहपर भाग होंगे जैसा कि, ऊपर वर्णन किया जा चुका है ।
दफा २७४ शामिल शरीक कुटुम्बमें दत्तकका भाग
जब खानदान शामिल शरीक हो और गोद लेनेवाला पिता अपने भाइयों के शामिल शरीक रहता हो ( कोई भाई दत्तकके नहीं ) तो दत्तकपुत्र को जायदाद में उतना हिस्सा मिलेगा जितना कि, उसे औरसपुत्र होनेकी हालत में मिलता ।