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दफा २४६]
दत्तक परिग्रह विधान
ततो यजमानः आचार्येणसहदातुःसमक्षंगच्छेत् प्राचार्यद्वारायाञ्चांकारयेत् । प्राचार्यो दातारंप्रत्येतस्मै पुत्रं देहीति याञ्चां कुर्यात् । 'ददामीति' दाता वदेत् । ततो दात्ता पाचम्य प्राणानायम्यदेशकालौ संकीर्त्य प्रतिज्ञां कुर्यात् ।
अग्नि स्थापन करके पश्चात् गोद लेने वाला अपने आचार्य को साथ लेकर पुत्र देने वाले के पास जाय और आचार्य द्वारा उससे पुत्र मांगे (गोद लेने वाला अपने आचार्य से कहे कि आप मेरे लिये अमुक से पुत्र मांगिये) प्राचार्य पुत्र देने वालेसे कहे कि 'आप मेरे यजमान की वंश बृद्धिके लिये अपना पुत्र दीजिये' पुत्र देने वाला कहे कि 'मुझे स्वीकार है मैं अपना पुत्र देता हूं, इसके बाद पुत्र देने वाला पवित्र होकर यज्ञवेदीके समीप आये और आचमन, प्राणायाम करके देश कालका स्मरण करता हुआ नीचे लिखी प्रतिज्ञा करे। (पवित्री आदि धारणकर पुत्र देने वाला यह संकल्प करे )
कुत्य-ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ तत्सब्रह्म श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयेपराद्धे विष्णुपदे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगेतत्प्रथमचरणे अमुकदीपे अमुक ""खण्डे तत्रापि परमपवित्रे भारतवर्षे अमुकदेशे अमुक
"क्षेत्रे श्रीगङ्गायमुनयोर्महानद्यारमुक"दिग्भागे-देवब्राह्मणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपतिविक्रमादित्यस्य राज्यादमुक संख्यापरिमिते श्रीशालिवाहन राज्यादमुक संख्या परिमिते वा प्रवर्तमानवत्सरे प्रभवादि षष्ठिसंवत्सराणां मध्येऽमुक 'नाम्नि संवत्सरे अमुक अक्ते असुक"ऋतौ अमुक "मासे अमुक पक्षे अमुक "तिथौ अमुक'वासरे अमुक नक्षत्रे अमुक "योगे:अमुक करणे अमुक
राशिस्थिते चन्द्रे अमुक राशिस्थे सूर्ये अमुक राशिस्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथारांशि स्थानस्थितषु सत्सु एवं