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दफा १८१]
साधारण नियम
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हो गई हो और उसका मुंडन असली बापके घर होगया हो वह पुत्र दत्तक लेनेके योग्य नहीं रहता बिल्कुल यहीबात पं० जगन्नाथ भट्टने मानी है।
जस्टिस् महमूद की राय--गङ्गासहाय बनाम लेखराज 9 All. I. L. 310 में जस्टिस महमूदने कहा कि जिस लड़केकी पांचवे वर्ष की सालगिरह असली बापके घर में न हुई हो वह गोदलेने के लिये मुनासिब होगा। देखो-- दफा २१६, २१८, २१६ २२६ । दफा १८१ दत्तक चन्द्रिकामें पांच वर्षकी कैद नहीं मानीगई
दत्तक चन्द्रिकाने दत्तक पुत्र की उमरके बारे में यह माना है कि अगर पांच वर्षसे अधिक उमरका पुत्र हो तो भी गोद लिया जासकता है कहा है कि--
यदि स्यात् कृत संस्कारो यदि वातीत शैशवः । ग्रहणे पञ्चामावर्षात् पुत्रेष्टिं प्रथमं चरेत् । जनक गोत्रेण कृत चूड़ान्त संस्कारस्य पुत्रत्वं निषिद्धयं प्रतिग्रहीत्रा पुनश्चड़ा कर्मादि करणे तत् प्रतिप्रसूतम् । ततश्च कृत संस्कारस्यातीत पञ्चवर्षस्य च ग्रहीत्रा चूड़ादि करणात् पूर्व दासत्वाक्षेपात् चूड़ादि करणानन्तरं पुत्रत्वं लब्धम् । एवञ्च चूड़ाद्या इत्य तद्गुणसम्बिज्ञान बहुव्रीहिण दिजातीनामुपनयन लाभः शूद्रस्यतु विवाहादि लाभः । दत्तक चन्द्रिकायाम् । - अगर असली बापके घरमें लड़केका संस्कार होगया हो और वाल्यावस्थाभी निकल गईहो तो पुत्रेष्ठि संस्कार करनेके बाद वह लड़का गोद लिया जा सकता है । गोद लेनेवाला दुबारा मुंडन आदि संस्कार अपने घरमें करलेवे संस्कार होनेके बाद पांच वर्षके बालकको गोद लेनेकी बात जो कही गई है वह सिर्फ आक्षेप है मुंडन होनेपर भी पुत्रत्व रहता है यहांपर 'बहुब्रीह समास' से उसके गुण सम्बन्धी ज्ञान से मतलब है। द्विजातियोंको उपनयन ( यज्ञोपवीत ) से और शूद्रोंको विवाहसे पूर्व गोद लेना सम्भव हो सकता।
दत्तक चन्द्रिकाका यह मत है कि अगर कोई दूसरा लड़का योग्य न मिले तो उस लड़के को भी दत्तक लिया जासकता है जिसका मुंडन असली बापके घर हो चुका हो । मगर यह शर्त लगाई गई है कि जब ऐसा लड़का गोद लिया जायतो गोद लेनेके पहले पुत्रेष्ठी कर्म करना आवश्यक है मगर