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दफा १४३]
बिना आज्ञा पतिके विधवाका दत्तक लेना
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उसे केवल रोटी कपड़े का अधिकार है । यह सिद्धांत उन स्कूलों से लागू नहीं होगा जिनमें कि इसके विरुद्ध बयान किया गया है । अगर किसी विधवाके पतिका बाप जिन्दा हो तो वही खानदानका मुखिया और विधवाका रक्षक होगा, तथा उसे तमाम खानदानी आवश्यकताओं के पूरा करने का अधिकार है। ऐसी सूरत में विधवा सिर्फ अपने ससुर की रजामन्दी से पतिके लिये दत्तक ले सकती है और वह दत्तक जायज़ होगा । यदि ससुर न जीता हो, तो उन भाइयोंकी रजामन्दीसे. जो गोद लेने की हालत में पतिकी जायदाद के हक़दार होंगे, गोद ले सकती है और वह गोद जायज़ होगा।
उदाहरण-(१) अज और शिव दोनों भाई मुश्तरका खानदान में रहते हैं और मिताक्षरा स्कूल मानते हैं । अज अपनी स्त्री को एक लड़का गोद लेनेका अधिकार देकर मर गया । अजके मरने पर उसका हिस्सा जो जायदाद में था सरवाइवरशिप (दफा ५५८) के हक के अनुसार शिवको पहुँच गया। शिवकी ज़िन्दगी में अजकी विधवा ने अपने पति के लिये एक लड़का गोद लिया । अब गोदका असर यह हुआ कि दत्तक पुत्र "कोपार्सनरी" (दफा ३६६) के अनुसार जायदादका वैसाही मालिक हो गया जैसा कि उसका दत्तक पिता था: देखो-सुरेन्द्र बनाम शैलजा 18 Cal. 385.
(२) अज और शिव दोनों भाई मिताक्षरा स्कूलके पाबन्द हैं और मुश्तरका खानदान में रहते हैं । अज अपनी स्त्री को गर्भवती छोड़कर मरा। उसके बाद शिव एक वसीयत के द्वारा अपनी स्त्रीको एक दत्तक पुत्र लेनका अधिकार देकर मर गया। शिव के मरनेके पश्चात दूसरे दिन अजकी विधवा के गर्भसे एक पुत्र पैदा हुआ । इसके तीन मास के बाद शिव की विधवा ने पतिके लिये एक लड़का गोद लिया। माना गया, कि वह दत्तक जायज़ है। अजका औरस पुत्र और शिवका दत्तक पुत्र दोनों "कोपार्सनर" तरीके रहेंगे और दोनों जायदादको मुश्तरका रखेंगे; देखो-बच्चू बनाम मनकूरी बाई 31 Bom. 373; 34 [ A. 107; 29 Bom. 51.
(३) बम्बई में एक केसका फैसला बड़ी बारीकी से किया गया । उसमें शकल यह थी-अज और शिव मुश्तरका रहते हैं। अज मरगया और उसकी जायदादका हिस्सा उसके भाईको सरवाइवरशिप (दफा ५५८ ) के द्वारा पहुँच गया। पीछे शिव मरा और विधवा छोड़ी। अब शिव को कुल जायदाद बहैसियत वारिस के मिली, जिसपर कि उसका पति मरने के वक्त हकदार था। पश्चात अजकी विधवा ने पतिके लिये एक लड़का गोद लिया । ऐसी सूरतमें दत्तक नाजायज़ माना गया यद्यपि दत्तक पतिकी आशानुसार लिया गया था। इसमें यह सिद्धांत लागू किया गया कि शिवके मरतेही जायदाद उत्तराधिकार के अनुसार उसकी विधवा को मिल गयी और मुश्तरका खानदान टूट गया। देखो--चन्द्र बनाम गूजरा बाई 14 Bom. 463. ....