________________
दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
ले सकती है मौजूद था जैसा कि बम्बई में ब्याख्या की गई है। यद्यपि व्यवहार मयूस्त्र लगभग सन् १७०० ई० से कार्यमें परिणत हुआ है किन्तु इसने किसी नये कानून को ईजाद नहीं किया बक्लि उस कानून की घोषणा किया है जो लिखे जानेके पूर्व प्रचलित था। महाराजा कोल्हापुर बनाम यस सुन्दरम् अय्यर 48 Mad. 1, A. 1. R. 1925 Mad. 497.
दत्तक विधवाद्वारा मद्रास प्रणाली-मद्रास प्रणाली के अनुसार विधवा को गोद लेने के लिये पुत्री के पुत्र से, जो कि बालिग हो और जो कि ठीक दूसरा पारिस होगा परामर्श लेने की आवश्यकता है। ए० ब्रह्मप्पा बनाम सी० रत्तप्पा 83 I. C. 59, A. I. R. 1925 Mad. 69.
दत्तक विधवाद्वारा--विधवा को गोद लेने के लिये दो सम्बन्धियोंमें से केवल पक की स्वीकृति की आवश्यकता है। एक ब्रह्मप्पा बनाम सी० रत्तप्पा 38 I. C. 59; A. I. R. 1925 Mad. 69.
(२) घटे हुए परिवार में एक सपिण्ड की मञ्जूरी काफी हैं। देखोकलक्टर आफ मदुरा बनाम मोटो रामलिङ्गम् 2 Mad. H. C. 206, 12. M. I. A. 897, 1 B. L. R. (P. C. ) 15 S. C. 10 Suth. ( P.C.) 17.
रामनाद केस-ऊपर के मुकदमे में विधवा ने अपने पतिकी अलहदा जमीदारीका वारिस बनाने के लिये पति के अधिक सपिण्डोंकी मञ्जूरीके अनुसार दत्तक लिया था जो सपिण्ड उस समय जीतेथे उनमें अधिकसपिण्डोंने मञ्जूरी दी थी। प्रश्न यह उठाथा कि “दक्षिण हिन्दूस्थानमें गोदकी मञ्जूरी देनेकेलिये सपिण्डोंकी संख्या कितनी होना चाहिये जो ऐसे गोदको जायज़ कर सकें जो बिना आशा पतिके गोद लिया गया हो" मदरास हाईकोर्ट ने इस प्रश्न पर अपनी राय दी। कहा कि दत्तक जायज़ है । उद्देश यह माना गया कि कानून की दृष्टि से दत्तक असलमें भाई या सपिण्ड से पुत्र पैदा कराने के प्राचीन नियोग नामक सिद्धांतके अनुसार मजूरीसे सम्बन्ध रखता है, और सपिण्डों की. रज़ामन्दी इस बारेमें केवल सभ्यता के लिहाज़से नहीं, बल्लि दूसरे तौरसे भी अधिक आवश्यक है, जो सपिण्ड योग्य रीतिसे और जिसे पतिके अन्य तमाम अधिकार दिये गये हों, और समझे जाते हों एक भी मञ्जूरी दे दे तो बह मञ्जूरी गोद लेनेके लिये उचित होगी। सभी मेम्बरों की मञ्जूरी होना ऐसे मामले में मुश्किल होगी। इस लिये एक मेम्बर--सपिण्ड की मजूरी काफी होगी जो योग्य हो और समाज के ज़ाहिरा उद्देश के विरुद्ध न हो तथा मजूरी किसी दूसरी गरज़से न दी गयी हो । यह फैसला जुडीशल कमेटीने बहाल रखा । यह रामनाद केसके नाम से मशहूर है 12 M. I. A. 397.
(३) मुश्तरका खानदान में-जहांपर कि खानदान शामिल शरीक हो वहां पर विधवा अपने पतिकी जायदाद के हिस्से से फायदा नहीं उठा सकती