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दत्तक या गोद
[ चौथा प्रकरण
जब्तीकी दशा में दत्तक - जब आखिरी मालिककी जायदाद सरकार में जब्त होगई हो, तो मी इस कारण से आखिरी मालिककी विधवाको दत्तक लेने में कोई बाधा नहीं पड़ती। महाराजा कोल्हापुर बनाम सुन्दरम् अय्यर 48 Mad. 1; A. I. R. 1925 Mad. 497.
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संयुक्त विधवाएं -- जबकि कोई व्यक्ति कई विधवाओंको छोड़ कर मर गया है और उनको एक दत्तक लेनेका अधिकार दे गया है तथा एक लड़का भी गोद लेने के लिये चुन गया है । ऐसी सूरतमें यदि गोद लेनेके पहिलेही कोई विधवा मरे और उस पुत्रको गोद लिया हुआ समझ कर उसे अन्त्येष्ठि क्रिया आदिके लिये कह जाय तो गोद लेने की प्रथा होने के पूर्वही उसकी मृत्युके कारण दत्तक नाजायज न होगा। महाराजा कोल्हापुर बनाम सुन्दरम् अय्यर 48 Mad. 1; A. I. R. 1925 Mad. 497.
दफा १२४ विधवा के गोद लेनेकी मियाद
यदि पति स्पष्ट कोई मियाद नबता गयाहो तो इस बारे में कोई मियाद नहीं निश्चित है कि विधवाको पतिसे पाये हुए अधिकारके अनुसार कब दत्तक लेना चाहिये; यानी विधवा जब चाहे दत्तक ले सकती है; कोई मुद्दत उसको पाबन्द नहीं करती; देखो - F. Macn. 157; 1 N. C. 111; राम किशुन बनाम श्रीपति 3. S. D. 367; 489–494.
बङ्गालमें एक गोद, पति के मरनेके पन्द्रह १५ वर्ष के बाद लिया गया । इस मुक़द्दमे में इस बातपर बहसभी की गई थी । और बम्बई प्रांत के मुक़द्दमों में गोद लेने की हद बीसें पच्चीसें बोवन और इकहत्तर सालतक मानी गई । देखो -- Amon. 2 M. Dig 18; भास्कर बनाम नारो रघुनाथ Bom. Sel. 24; ब्रजभूषण जी बनाम गोकूलूट सावो जी 1 Bor. 181 ( 202 ) निम्बालकर बनाम जयावन्तराव 4 Bom. H. C, J. (A. C. J.) 191; गि
ओवा बनाम भीमाजी रघुनाथ 5 Bom. 581; दखिना बनाम रासबिहारी 6 Suth. 221; इस केस में साबित हुआ कि विधवा बारह साल के बाद गोद नहीं ले सकती और यह मियाद पतिके मरने से पैदा होगी ।
दफा १२५ व्यभिचारिणी विधवा दत्तक नहीं ले सकती
व्यभिचारिणी विधवा दत्तक नहीं ले सकती, यानी दत्तक लेनेके समय यदि वह व्यभिचारिणी हो तो उसका लिया हुआ दत्तक नाजायज़ होगा । मगर प्रायश्चित्त करलिया हो तो दूसरी बात है; देखो - कोरी कोली थानी बनाम मनीराय 13 Bom. L. R.14.
व्यभिचारिणी विधवा धार्मिक कृत्योंके करने योग्य नहीं रहती, इस कारणसे पतिके दिये हुए दत्तक लेनेके अधिकार प्राप्त होनेपर भी वह दत्तक