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दफा १९६-१२०]
विधवाका गोद लेना
जानेके साथही साथ उसे यह अधिकारभी प्राप्त हो जाता है कि वह जायदाद के अन्तिम अधिकारीका वारिस हो किन्तु यह सामान्य सिद्धान्त निम्न न्यायकी पावन्दियोंके अधीन है:
(१) कि जायदाद, पहिले ही से, गोद लेने वाली विधवा या उसकी संयुक्त विधवा के अतिरिक्त और किसी पर उत्तराधिकार से न प्राप्त हुई हो।
(२) यह कि जायदाद यदि उस जायदाद का जो हिस्सेदारों के कब्जे में है, कोई भाग है, तो हिस्सेदारों की रजामन्दी आवश्यक है।
जब कि किसी जायदाद का अन्तिम अधिकारी, अपनी जायदाद पर सम्पूर्ण तथा धिला शामिल शरीक अधिकार के मर जाता है और उसकी जायदाद सीधा उसकी पुत्रवधू को इस कारण प्राप्त होती है कि उसका पति (अन्तिम अधिकारी का पुत्र ) अपने पिता के सामने ही, जो कि उस जायदाद का अन्तिम अधिकारी था, मर गया था । अन्तिम अधिकारी को पुत्र बधू अपने पति के लिये गोद लेती है । वह दत्तक अन्तिम अधिकारी का वारिस होता है । बसन्तराव बनाम देवराव; 24 Bom. 463, 20 Bom. 250; 2l Bom. 319, 26 Bom. 526 A. I. R. 1922 Bom. 321; 29 Bom. 410; 31 Bom. 373; 32 Bom. 499 Dist; A. I. R. 1927 Nagpur 2. दफा १२० दत्तक पुत्रका कबसे अधिकार होगा
अब दत्तक किसी विधवाने लिया हो तो उस दत्तक पुत्रके हक़ उसी वक्तसे पैदा होंगे जिस वक्त कि वह गोद लिया गया हो, यानी गोद लेनेवाले बापके मरनेके वक्तसे नहीं पैदा होंगे, चाहे उसे विधवा ने पतिकी आज्ञासे लिया हो या न लिया हो; देखो लक्ष्यणराव बनाम लक्ष्मी अम्मल (1881) 4 Mad. 160; बामनदास मुकरजी बनाम मुसम्मात तारणी 7. M. 1. A. 169-184; गनपति ऐय्यन बनाम सावित्री अम्मल 21 Nad. 10-16; नारायनमल बनाम कुँवर नारायन मेरी 5 Cal. 261; मोरो नारायन जोशी बनाम बालाजी रघुनाथ 19 Bom. 809.
उदाहरण-महेशको एक जायदाद सरकारसे इस शर्तपर मिली कि जबतक उसके मर्द संतान रहे उसका मुनाफ़ा पाता रहे । महेशके मरनेके दूसरे दिन विधवाने गोद लिया ऐसी सूरतमें सरकारकी शर्त टूट गई, क्यों कि दत्तकपुत्रका अधिकार उसके गोद लेनेके समयसे हुआ। अगर महेशकी जिन्दगीमें गोद लियागया होता तो जायदाद मिलती।