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दत्तक या गोद
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[चौथा प्रकरण
देवर, श्वशुर, आदि गुरुजनों की आज्ञा के बिना किसी भीव्यवहारिक विषय में स्त्री को स्वातन्त्र्य नहीं है । वचन ये हैं--
रक्षेत् कन्यां पिता विन्नां पतिः पुत्रास्तु वार्द्धके अभावे ज्ञातयस्तेषां न स्वातन्त्र्यं क्वचित् स्त्रियाः।
( याज्ञ० आचा० ८५ श्लो०) अर्थ--विवाह के पूर्व कन्या की दशा में पिता रक्षा करे । विवाह के उत्तर पति, तथा वृद्धावस्था में पुत्र, और इन सब के न रहने पर जाति वाले संरक्षण करें। तात्पर्य यह है कि स्त्रियों को इनही के संरक्षण में सदा रहना चाहिये । इनकी आज्ञा के बिना व्यवहार में स्त्रियों को किसी अवस्था में भी स्वातन्त्र्य नहीं है।
इसलिये पति वगैरह गुरुजनों की आज्ञा के बिना स्त्री अपनी इच्छा से किसी लड़के को गोद नहीं ले सकती है।
प्रश्न ३-संनिहित सपिण्ड के होते गैर खानदान का पुत्र जायज़ माना जाता है या नहीं?
उत्तर ३--याज्ञवल्क्यस्मृति व्यवहाराध्याय के १३० वे श्लोक की मिताक्षरा में वसिष्ठ स्मृति का बचन लिखा है कि___'पुत्रं प्रतिग्रहीष्यन् बन्धूनाहूय राजनिचावेद्य निवेशनमध्ये व्याहृतिभिहुत्वा अदूरबान्धवं बन्धु सनिकृष्ट एवं प्रतिगृह्णीयात् ।' __अर्थ-गोद लेते वक्त भाई बन्धों को इत्तला देकर उनको बुला कर उनकी राय से, और राज में इस बात को ज़ाहिर करके, मण्डपके भीतर व्याहृति होम करके, जो रिश्तेमें दूर न हो ऐसे लड़के को नज़दीक सपिण्ड वाले ही गोद लेवें ।
___ इस वचन के, अनुसार संनिहिति सपिण्ड के होते गैर खानदान के लड़के को गोद लेना जायज़ नहीं है।
मिताक्षराके अतिरिक्त औरमीसबहीधर्म ग्रन्थोंकी यहीसम्मति है। जैसाकि व्यवहारमयूखमें वही वसिष्ठका बचन इस प्रकार लिखा है--
'अदूरे बाधवं सनिकृष्ट मेव गृह्णीयात्' अर्थ--रिश्ते में दूर न हो; जहां तक नज़दीकी मिलै उस ही को . गोद लेवे । इस वचन के अनुसार मयूख स्पष्ट लिखा है कि--
'अदूरे बान्धवो यथायथं सनिहितः सपिडः'
संनिहितेष्वपि भ्रातृ पुत्रो मुख्यः' अर्थ--अदूर बान्धव वही है जो हर तरह से संनिहित सपिण्ड हो । संनिहित सपिण्डों में भी भाई का बेटा ही मुख्य है।