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दत्तक या गोद
[ चौथा प्रकरण
दत्तक का क़ानून शौनक, मनु ६-१६८, वसिष्ठ १५-१-१० याज्ञवल्क्य, मिताक्षरा, मयूख, दत्तक चन्द्रिका, दत्तक मीमांसा और कांस्तुभ आदि स्मृतियों के आधार पर बना है । वास्तव में देखिये तो यह सम्पूर्ण क़ानून शौनक के केवल एक वाक्यपर निर्मित हुआ है । वह वाक्य यह है 'पुत्रच्छायामः ' दत्तक के क़ानून के प्रामाणिक ग्रन्थोंका विस्तार से वर्णन गङ्गासहाय बनाम लेखराज सिंह 9 All. 288 में किया गया है । “पुत्रच्छायावः " इस सूत्रका विवरण दफा १७२ में देखो दत्तककी रसम अति प्राधीन है देखो दफा ६६.
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अग्रवालों में दत्तक लेना केवल सांसारिक कार्य है धार्मिक नहीं - श्र वाले ब्राह्मण प्रणाली के हिन्दुओं से मृतक संस्कार के सम्बन्ध में भिन्न मत रखते हैं । उनका यह भी मत है कि सन्तान से पूर्वजों की भविष्य अवस्था में कोई प्रभाव नहीं पड़ता और इसी लिये, उनके विचार में दत्तक लेना केवल एक प्रकारका सांसारिक प्रबन्ध है और इसका कोई विशेष तात्पर्य नहीं है । धनराज जौहरमल बनाम सोनी बाई 52 Cal. 482; 52 I. A. 231; (1925) M. W. N. 692; 87 I. C. 357; 27 Bom. L. R. 837; L. R. 6 P. C. 97; 23 A. L. J. 273; 2 O. W. N. 335; 21 A. L. R. 50; A. I. R. 1925 P C. 118; 49 M. L. J. 173 (P. C.)
दफा ९२ दत्तककी चाल किसकौम में कैसी है ?
गोद लेने की चाल पारसियों और मुसलमानोंमें नहीं है । यहूदियोंमें गोद की चाल किसी समय जारी थी, मगर अब नहीं रही। किंतु उन मुसलमानों मैं जो बहुत वर्षों से हिन्दुओं के, बीच में रहते आये हैं, अधिकतर पञ्जावी मुसलमानों में गोदकी चाल पाई जाती है । हिन्दुओं में प्राचीन काल से गोदकी रसम जारी है । हिन्दुओंके सिवाय भी गोदकी रसम अन्य देशवासियों में पहले थी और अब भी कहीं २ पाई जाती है । मध्य अफ्रीका और मेडागास्कर मैं दत्तकपुत्र बड़ा श्रेष्ठ माना जाता है । दत्तकपुत्र और असली लड़के में कुछ फरक नहीं समझा जाता। इसीसे दोनों का हक़ बराबर माना जाता है । गोद की रस्म पहले यूनान और रोम में भी थी । वहां गोद लेनेकी ऐसी चाल थी कि गोद लेनेवाले लड़के के मातापिता पहलेसे ही गोद लेनेवाले को अपना पुत्र दे दिया करते थे और पीछेसे गोद लेनेवाली माता प्रसूति बनकर प्रकट करती थी कि उसके लड़का पैदा हुआ है। तभीसे वह लड़का मातापिताका दत्तकपुत्र समझा जाता था । रूस साम्राज्यके सरकेशिया प्रांतमें दत्तककी चाल ऐसी थी कि गोड़ लेने वाली माता लड़के को अपने स्तन पिला कर दत्तक कर लेती थी । इससे प्रमाणितकर लिया जाता था कि वह लड़का गोद लेने वाले माता पिता का हो गया । गोद लेनेकी रसम न केवल हिन्दुओं में जारी श्री, बक्ति अनेक देशों में यह प्रथा प्रचलित थी । अब उसमें बहुत कुछ फेर बदल हो गया है। हिन्दुस्थानके अधिक भागमै यद्यपि