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एक्ट सन १९२८ ई०]
बालविवाह निषेधक बिल
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विपरीत सिद्ध न कर दिया जाय, कि वह व्यक्ति जो ऐसे नावालिग की निगरानी रखता है बालविवाह को रोकने में अपनी असावधानीके कारण ही असमर्थ हुआ है। दफा ७ दफा ३ के जुर्मों में कैद की सज़ा न होगी
इस एक्टकी दफा ३ के अनुसार किसी अपराधी को दण्ड देते हुए किसी अदालत को इस बातका इख्तियार न होगा कि ऐसा दुक्म दे दे कि अपराधी के (लगाये हुए) जुर्माना न देनेपर उसे अमुक समय तक कारावास भोगना पड़ेगा । यद्यपि जनरल क्लाज़ेज़ एक्ट ( General Clauses Act ) सन १८९७ ई० (सन १८८७ ई० का दसवां एक्ट) की दफा २५ या संग्रह ताज़ीरात हिन्द ( Indian Penal Code) सन १८६०ई० की दफा ६४ में कुछ और लिखा है। दफा ८ इस एक्ट के अनुसार इख्तियार
जितने जुर्म इस एक्ट के अर्न्तगत होंगे उनकी सुनाई प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के अतिरिक्त अन्य कोई मजिस्ट्रेट न कर सकेगा यद्यपि दफा १६०, संग्रह जाबता फौजदारी, सन १८५८ ई० में कुछ और लिखा हो। दफा ९ जुर्मों की सुनवाई करने का तरीका
कोई अदालत इस एक्टके अन्तर्गत जुर्मों की सुनवाई न कर सकेगी सिवाय ऐसी हालत में जब कि इस्तगासा दायर किया गया है और वह भी उस विवाहके होनेसे एक साल के अन्दर हुआ है जिसके बारे में जुर्म किया जाना कहा जाता है। दफा १० इस एक्टके अनुसार होने वाले जुर्मीकी जांच
यदि वह अदालत जो कि इस एक्ट के अनुसार होने वाले किसी जुर्म की सुनाईकर रही है उस इस्तगासेको दफा २०३ संग्रह जाबता फौजदारी सन १८१८ई० ( Criminal Procedure Code 1898 ) के अनुसार खारिज न करेगी तो उक्त संग्रह (Code) की दफा २०२ के अनुसार या तो स्वयं आंच करेगी या अपने अधीन अव्वल दर्जे के किसी मजिस्ट्रेट को ऐसी जांच करने के लिये आदेश देगी। दफा ११ अभियोक्ता (मुस्तगीस)से जमानत लेनेका इख्तियार
(१) अमियोक्ता (मुस्तग्रीस) का इज़हार लेने के पश्चात् और अभियुक्त (मुलज़िम) की हाज़िरी को वाध्य करने लिये आज्ञापत्र निकालने