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विवाह
[दूसरा प्रकरण
अपनी बेटीका 'सर्वस्वाधनं, विवाह कर सकता है, एसे विवाहका फल यह होता है कि यदि बेटीके पुत्र उत्पन्न हो तो वह अपने नानाकी जायदादका वारिस होता है और धार्मिक मतलबों के लिये वह अपने नानाका पुत्र माना जाता है। अगर बेटीके पुत्र उत्पन्न न होतो बेटीके बापकी जायदादका वारिस बेटी का पति नहीं होता बक्लि वह जायदाद बेटी के बापके खान्दानमें चली जाती है.-देखो वसुदेव बनाम सेक्रेटरी आफस्टेट 11 Mad. 157; 9 Mad. 260 यदि विवाह के समय ही जायदाद का वारिस नियत कर दिया गया हो तो दूसरी बात है।
पंजाबके कस्टमरी लॉ के अनुसार अगर किसी आदमी ने दामाद को घर जमाई बना लिया हो और यह उद्देश्य हो कि वह अपनी ससुरालकी आयदाद का वारिस हो तो ससुराल का कोई पुत्र न होने की सूरतमें घर जमाई अपनी ससुरालकी जायदाद का वारिस होगा देखो राटिगन् का पंजाब कस्टमरी लॉ की दफा २१ पेज १५ मगर यह कायदा सिवाय पंजाबके और किसी स्थानमें नहीं माना जायगा । मिताक्षरा स्कूल या दाय भाग स्कूल के अंदर दामाद को उत्तराधिकारी हरगिज़ नहीं माना है।