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________________ दफा ५७ ] वैवाहिक सम्बन्ध ब्राह्मणस्य चत्वारो भायर्या क्षत्रियस्य तिस्त्रो वैश्यस्य दे शूद्रास्यैकेति स्थितम् । याज्ञवल्क्य आचारे० श्लोक ६० में कहते हैं किसवर्णेभ्यः सवर्णासु जायंतेहि सजातयः अनिन्द्येषु विवाहेषु पुत्राः सन्तान वर्द्धनः । नीलकण्ठका कहना है कि ब्राह्मण चार, क्षत्रिय तीन, वैश्य दो वर्णों की (अनुलोमज क्रमसे ) स्त्रियोंसे विवाह कर सकता है और शुद्ध सिर्फ शूद्रा से । याज्ञवल्क्य कहते हैं कि सवर्ण पुरुष और स्त्रीसे अनिन्द्य विवाह द्वारा उत्पन्न पुत्र सन्तानके बढाने वाले होते हैं । आगे कहते हैं कि-- विप्रान्मू‘वसिक्तोहि क्षत्रियायांविशः स्त्रियां अम्बष्ठः शूद्रयां निषादो जातः पारशवोपिवा । ६१ वैश्याशूद्रयोस्तु राजन्यान्माहिष्योग्रौ सुतौस्मृतौ वैश्यात्तु करणः शूद्रयां विनास्वेष विधिः स्मृतः । ६२ ब्राह्मण पुरुषसे विवाहित क्षत्रिया स्त्रीले 'मूर्द्धावसिक्त' और विवाही हुई वैश्य कन्यां से 'अम्बष्ठ' और विवाही हुई शूद्र कन्यासे 'पारसव' नामक पुत्र पैदा होते हैं। विवाही हुई वैश्य और शूद्रकी कम्यासे क्षत्रिय पुरुष द्वारा 'माहिष्य' और 'उग्र' क्रमसे पुत्र पैदा होते हैं। वैश्य पुरुषसे विवाहित शूद्रकी कन्यासे 'करण' नामक पुत्र पैदा होते हैं । यह विधि विवाही हुयी अन्य वर्ण की कन्याओं में मानी गयी है। इस जगह 'विन्ना' शब्द बहुत ही ज़रूरी है। "विना" शब्दके सम्बन्धमें मिताक्षरामें कहा है विनासूढासु' और सुवोधिनीमें कहा है विन्नासु परिणीतासु स्मृतो मुनिभि" ( देखो-S. S. Settur B. A. LL. B; H. C. Bombay's Mit: kshara 1913 P. 66), विवाही हुई कन्या विन्ना कहलाती है। और भी देखो मांडलीक हिन्दूलॉ पेज ४६, ४७. इसमें सन्देह नहीं कि इन प्राचार्योंने असवर्ण विवाहोंके सम्बन्धक प्रश्नपर विचार किया था। जहां तक मैं समझा हूं आचोंने अनुलोमज विवाह किसी न किसी प्रकार स्वीकार किया है और प्रतिलोमजके इकदम विरुद्ध रहे हैं । अब अपीलांटकी तरफसे सिर्फ यह बात कही जाती है कि रसमके अनुसार इस प्रकारके विवाहकी मुमानियत है मैं इस बातके स्वीकार करने में असमर्थ हूं कि इस प्रकारका विवाह गैर कानूनी है और कानून द्वारा ऐसे
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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