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हिन्दूलॉ के स्कूलोंका वर्णन
[ प्रथम प्रकरण
को प्रधानताके साथ साथ सुबोधिनी, वीरमित्रोदय, कल्पतरु, दत्तक मीमांसा और निर्णयसिंधु उससे कम दरजेपर माने जाते हों ।
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संयुक्त प्रदेश -- मिताक्षराका प्रधान शासन है, यद्यपि जहां मिताक्षरा मौन होता है वहां पर दूसरे प्रमाणोंपर विचार किया जाता है कन्हैय्यालाल नाम मु० गौरा 83 I. C. 147; L. R. 6 A. 1. 147 All. 127; A. I. R.
1925 All. 17.
सिन्ध में मिताक्षका कुछ प्रभुत्व माना गया । देखो बोदोमल बनाम किरानी बाई 93 I. C. 844.
मगर कुछ मामलों में बम्बई स्कूलका प्रयोग बरारमें हुआ है । हरिगिरि किशन गरि गोस्वामी बनाम आनन्द भारती 1 ( 1925 ) M. W. N. 414; 21 N. L. R. 127; 22 L. W. 355; 88 I. C. 343; A. I. R. 1925 P. C. 127 ( P. C. )
बरार -- बरार में मिताक्षरा प्रधान है और इसके बाद मयूखकी गणना है इसका केवल उसी समय उपयोग किया जाता है मिताक्षरा मौन या जब सन्देहात्मक होता है । नारायन बनाम तुलसीराम 87 1. C. 979; A. I R. 1925 Nag 329 (F. B. ).
बरार -- बरारमें मिताक्षरा प्रधान और मयूख गौण है; किन्तु ऐसी श्रवस्था में, जहां कि मिताक्षरा मौन होता है और मयूखकी स्पष्ट अनुमति होती है वहां मयूखका प्रयोग होता है गनपति बनाम मु० सालू 89I. C. 345. श्रीखेमराज श्रीकृष्णदासका मुक़द्दमा -- बनारस स्कूलका अधिकार भारत के उत्तर पश्चिम देशमें माना गया है ( ट्रिबेलियन हिन्दूलॉ एडीशन पेज १० ) उत्तर पश्चिममें राजपूताना और मारवाड़ देश शामिल हैं प्रायः मारवाड़ देश मैं गोद लेने की चाल अधिक है और जब कभी उनके बीचमें गोदके मुक़दमे अथवा उत्तराधिकारके मुक़द्दमे अङ्गरेज़ी राज्यमें दायर होते हैं तो बड़ा ज़रूरी सवाल यह होता है कि मुक़दमा कौन स्कूलसे लागू किया जाय । अग्रवाल वैश्य जाति में बनारस धर्मशास्त्रका आदर करना प्राचीन कालसे चला आता है ( देखो दफा ३२१ ) इस ग्रन्थकर्ताको यद्यपि अनेक ऐसे मुक़द्दमों में काम करना पड़ा जिनमें रवाज और इसी क़िस्मके दूसरे विषय थे । इस क़ानूनके प्रथम संस्तरणके लिखने के समय एक गोदके मुक़द्दमे में यही बात पैदा हुई । मुक़द्दमा था हिन्दुस्तान के प्रसिद्ध श्रीवेङ्कटेश्वर प्रेस बम्बईके मालिक सेठ खेमराज श्रीकृष्णदासका । वाक़ियात यह थे - गङ्गाविष्णु और खेमराज भाई थे दोनों बटे हुए हिन्दू खानदान में रहते थे, गङ्गाविष्णुके मरने के बाद उनकी विधवा जानकी बाईने ता० ८ मार्च १६०६ ई० को एक दत्तक लिया, विधवा १६ अगस्त सन १९११ ई० में मर गयी। सेठ खेमराजने ता० २४ अगस्त सन १६९९ ई० में