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जुरमानेके साथ १ माह तककी सादी कैदकी सज़ा मिल सकती है। वधू बालिग हो भौर पर नाबालिग हो तो वरके संरक्षकों को उसी प्रकार सजा मिल सकती है। मगर हां विवाह कराने वाले पुरोहित जी का बेदब मसला है उनके लिये जुरमाना और जेल दोनों सजायें मिल सकती हैं मगर बचनेकी भी गुंजाइश उन्हें रखी गई है जब वे साबित कर देंगे कि वर-वधूके १८ और १४ सालसे कम उमर न समझनेका उनके पास पर्यास कारण था, या उन्हें धोखा दिया गया था, तो वे छूट जावेंगे। कुछ दिनों तक विवाह कराने वाले पुरोहित जी बड़ी मुश्किलसे मिलेंगे, मिलेंगे तो दक्षिणा पहले ठहरावेंगे उस समय १०००) जुरमाना और १ मास की सजाका भाव अन्तःकरणमें रहेगा। कितनेही शुख हृदय विचार शील पुरोहित बड़े प्रसन्न होगे और अपने यजमानके भविष्य वंश वृद्धि की आशा पर आह्लादित होंगें, पुराहित जी के न मिलने पर कुछ लोग स्वयं विवाह कृत्य कर लेंगे। कानूनका सारांश हमने बता दिया पाठक समझ देखें इसमें कौन बात भयप्रद है ?
कानून तो पास हो गया और पहिली अप्रेल सन् १९३०ई० से प्रचलित भी होगा मगर अभी माननीय पूज्य धर्माचार्योंके दलमें विक्षोभ उपस्थित है। उनके समुदायमें भी दो दल हैं, दोनों शास्त्रबचनों और संगतिके अनुसार अपना अपना पक्ष समर्थन करने में लगे हैं। इस कानूनके विरोधी बिल कौन्सिलमें पेश भी होने वाले हैं। मैं इस कानूनका स्वागत करता हूँ और आशा करता हूँ कि देशकी सामाजिक उन्नतिमें इसके द्वारा सहायता मिलेगी। साथही मुझे संस्कृत विद्वानों पर पूर्ण भक्ति और श्रद्धा है, उनके परस्पर विरोध दलोके शास्त्रार्थ देखकर दुःखी हो रहा हूँ इसलिये मैं हाथ जोड़ कर अपने पूज्य संस्कृत विद्वानोंसे सविनय प्रार्थना करता है कि देशकाल का देखकर अब इस विषयका आन्दोलन शांत करदें। बहुतसी बातें शास्त्रके विरुद्ध हो चुकी हैं और हो रही हैं कुछ ऐसी हैं जिनकी आवश्यकता सर्वोपरि है किन्तु कुछ तो विवशताके कारण और कुछ अपनी अस्थायी उत्तेजनाके कारण उनके प्रति कोई आन्दोलन नहीं हो रहा मानो वे अब नैमित्तिक हो गई हैं।
इस कानूनकी व्याख्या श्रीयुत बा० रूपकिशोर जी एम० ए० एलएल० बी० एम०आर० ए. एस. एडवोकेट ने सबके समझने योग्य सरल भाषामें लिखी है। आप अनुभवी और विचारशील वकील होते हुए हिन्दीके अच्छे लेखक हैं। आपने कई कानून हिन्दीमें लिखे हैं जिनसे आपकी योग्यताका परिचय जनताको भली प्रकार मिल गया होगा। सनके परिश्रमका यह फल हुआ कि हम अपने भाइयोंके सम्मुख यह आवश्यक कानून व्याख्या सहित छापकर उपस्थित करने में समर्थ हुए। आशा है कि हिन्दी जानने वाले भाइयोंको इससे मदद मिलेगी यदि किसी अंशमें ऐसा हुआ तो हम अपने परिश्रमको सफल समझेंगे । ता. १५ नवम्बर सन् १९२९ई.
विनीत:
चंद्रशेखर शुक्ला
भूल सुधार:-पेज ९ की तीसरी सतरमें "इस कानूनसे कन्या और वरके संरक्षकको सजा दी जावेगी” इस वाक्यके स्थान पर “ बाल विवाह करने वाले पक्षके संरक्षकोंको सजा दी जावेगी"ऐसा समझना चाहिये।