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और जुर्मानेका रुपया कहांले फायेगा ? घर बगीचा चिकने पर भी १०००) रु० की रकम पूरी न होगी उधर सजा तो काटनी ही पड़ेगी। कुछ लोगोंकी यह आदत होती है कि अपनी कानूनी पण्डित ई की लियाकत दिखाने और बड़े बुझक्कर बनने के लिये अनपढ़ अथच सीधे सादे भोले आदमियों को जीका सांप बनाकर बताया करते हैं, यही हालत देशब्यापी इस नये कानूनकी उन लोगोंने की है मीचे हम इस क़ानूनकी मोटी मोटी बातें बताते हैं, पाठक समझें इस कानूनमें वास्तव में क्या कोई भयंकरता है ? या इससे डरनेका क्या कोई वैसा कारण है ?
हमने इसे कई बार शुरुसे आखीर तक पढ़ा मगर कहीं पुलिसका नाम भी नहीं है, इस कानून से पुलिसका किसी प्रकार से सम्बन्ध नहीं है, बाल विवाह हो या न हों पुलिस इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती । पहले यह भय था परन्तु दिलके पक्षपातियों को भी अपनी बेटियों और - अपनी इज्जतका ख्याल उतनाही था जितना कि विरोधी पक्ष वालों को था । इस कानून के द्वारा पुलिस किसी पर मुकद्दमा चला नहीं सकती । बिरादरी वाले, पड़ोसी, या गांव वाले अथवा वे लोग जो अपनी जिम्मेदारी पर मुकद्दमा चलाना चाहें चला सकते हैं । वे ही अदालत में भर्जी दे सकते हैं। पुलिस कदापि मुकद्दमा नहीं चला सकेगी और न मजिस्ट्रेट के यहां अर्जी दे सकेगी। अगर पुलिसको यह मालूम हो कि अमुक व्यक्तिने अपनी लड़की या लड़केकी शादी १४ या १८ सालसे कम उमर में की है तो भी पुलिस अर्जी नहीं दे सकती और न तहकीकात कर सकती है यहां तक कि इस मामले की बात भी नहीं पूछ सकती है । दूसरे लोगोंके अर्जी देने पर जब मजिस्ट्रेटको विश्वास हो जाय कि वास्तव में किसीने ऐसा अपराध किया है तो भी वह पुलिस द्वारा जांच नहीं करा सकेगा । मजिस्ट्रेटको खुद उस मामले की जांच करना होगी। दूसरे और तीसरे दर्जेके मजिस्ट्रेट ऐसा मामला सुन नहीं सकते । डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की अदालत में ऐसी अर्जी दी जावेगी । कानूनमें अर्जी देने वालोंके लिये भी एक सख्त कैद लगा दी गई है ताकि कोई आदमी बृथा परेशान करनेकी गरज से या दुश्मनीका बदला इस प्रकार निकालने के मतलब किसी पर ऐसी अर्जी न दे । इस कानूनकी दफा ११ के अनुसार अर्जी देने वालेसे १००) रु० की ज़मानत पहिले ले ली जायगी और अगर उसने यह जमानत न दी तो अदालत अपराधी को तलब भी न करेगी और अर्जी खारिज कर देगी । हमें विश्वास है कि इस विचारसे लोगों के दिलसे पुलिसकी चिन्ता दूर हो जायगी जो पुलिसको यमराजकी तरह डरते हैं । डाक्टरी परीक्षाका भय भी कुछ नहीं है कानूमके अनुसार अगर मजिस्ट्रेट यह समझे कि वास्तव में जिस कन्याका या पुत्रका विवाह किया गया है १४ और १८ वर्षसे कम उमरके हैं तो उसकी उमरके सम्बन्धमें मोहले, गांव, अड़ोस पडोस के प्रतिष्ठित आदमियोंकी गवाही दिलानाही काफी होगा । जन्म-पत्र दाखिल करना, पैदाइशके रजिष्टर से साबित करना, मदरसे के इन्दराज आदि से साबित किया जासकता है । अगर दोनों पक्षोंकी शहादतका समान बल हो और मजिस्ट्रेट स्वयं या किसी फरीकृकी दरख्वास्त पर मुनासिब समझे कि डाक्टरी परीक्षा कराई जाय, तो ऐसी आखिरी परिस्थिति में हो भी सकेगी । वधूको दण्ड हो ही नहीं सकता, वर अगर नाबालिग हो तो उसे भी दण्ड नहीं हो सकता। जिसकी उमर १८ वर्षसे ऊपर और २१ वर्ष से कम हो तो जुरमाने की सजा होगी, जुरमाना न दे सकने पर भी क़ैद न होगी । २१ सालसे अधिक उमरका पुरुष अगर १४ सालसे कम उमरकी कन्यासे विवाह करेगा तो उसे जुरमाना और १ मासके क़ैद की सजा होगी, जेलकी सजा भी सादी कैद की सजा रखी गई है । वर-वधू नाबालिग हो तो उनके संरक्षकोंको सजा होगी । स्त्री हो तो सिर्फ जुरमानेकी पुरुष हो तो