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कानूनका संक्षिप्त इतिहास और जानने योग्य बातें
आज हम यह कानून हिन्दी पाठकोंकी सेवामें विस्तृत व्याख्या सहित उपस्थित कर रहे हैं। माननीय श्री हरिबिलास जी सारडाने दिल्लीकी भारतीय व्यवस्थापिका सभामें सन् १९२६ ई. में इस कानूनके बनाये जाने के लिये बिल पेश किया था। जैसे जैसे समय बीतता गया और इस बिल का रूपान्तर होता गया उसी तरह देशके कोने कोने में इसकी चर्चा बढ़ने लगी, समर्थन और विरोध में अनेकों सभायें हुयीं । भारतके प्रत्येक प्रांतके प्रत्येक बड़े शहर या नगरमें दोनों तरफकी सभाएं हुयीं और बड़े बड़े प्रस्ताव जोशके साथ पास किये गये । श्री सारडा जी के पेश किये हुए इस बिल का नाम 'सारडा बिल' पड़ गया । समाचार पत्रों, सभाओं, तथा प्रस्ताओं में यही नाम लिखा और कहा जाने लगा । प्रथमवार कौंसिलमें पेश होने पर यह बिल एक विशेष समिति ( सेलेक्ट कमेटी) के सिपुर्द विचार करने के लिये किया गया । विशेष समितिने जब इस 'सारडा बिल' पर विचार किया तो उस बिलको प्रायः रद्द करके उसने अपनी तरफसे एक नया बिल बनाकर कौंसिल के सामने पेश किया जिससे मूल सारड़ा बिलका बिल् कुल रूपान्तर होगया । सारड़ा बिल जिस रूपमें सर्वप्रथम पेश हुआ था वह प्रायः बहुत कुछ संशोधित होकर एक नये रूपमें फिर. कौंसिलके सामने सेलेक्ट कमेटी द्वारा पेश हुआ। कौंसिलने दूसरो विशेष समिति ( सेकेन्ड सेलेक्ट कमेटी ) बनायी और विचारार्थ यह बिल उसके सिपुर्द किया । जबसे यह बिल दूसरी विशेष समिति के सामने आया देशमें अधिक हलचल मची और दोनों पक्षों के अगुआओंने बड़े जोरोंका आन्दोलन शुरू किया। एक ओर भविष्यदर्शी विचारशील विद्वानों ने जोर पकड़ा दूसरी ओर धर्म शास्त्रियों द्वारा प्रभावित इतर विद्वान समुदाय विरोधमें खड़ा हुआ । प्रबल स्पर्धाक साथ दोनों पक्षोंने पूर्ण शक्तिसे मुकाबिला किया। इस बिलके समर्थन और विरोध दोनों पक्षोंके स्त्री और पुरुषोंने भाग लिया और दोनों दलोंके नेता श्रीमान् बड़े लाट साहब से मिले और अपने अपने पक्षकी बातें समझायीं।
__ यों तो सारे देश में इस विलके विरोध सभायें हुयीं पर इस बिलका सबसे ज्यादा विरोध मद्रासके द्रविड़ पंडिताने किया सभाओंके अलावा ३१ अगस्त १९२९ को मदरासका एक सभ्य दल बड़े लाट साहबसे मिला और १५ पेजोका एक प्रार्थना पत्र पेश किया जिसमें मख्य बात कि महरानी विक्टूरिया घोषित कर चुकी हैं कि धार्मिक विषयों पर दखल नहीं दिया जायगा, हिन्दू विवाह धार्मिक कृत्य है, बच्चों की मृत्यसे बाल विवाहकः सम्बन्ध नहीं है. एक बडे मजेदार बात
और कही गई श्रीमती लक्ष्मी अम्मल ( स्त्री ) ने कहा कि मेरा विवाह ३ वर्षकी उमरमें ११ वर्षकी उमरके पति के साथ हुआ था अब मेरी उमर ६० वर्षकी है मगर मैं अबतक तन्दुरुस्त हूं इससे प्रमाणित है कि बाल विवाह करनेसे शारीरिक बल नहीं घटता। इसी तरह पर अन्य दलोंके नेताओं ने भी बड़े लाट साहबसे मिलकर अपने अपने पक्ष की ओर से प्रार्थनायें की। अन्य प्रान्तीने वैसा कट्टर 'विरोध नहीं किया, आशंका यह थी कि मुसलमान भाई एक मतले घोर विरोध करेंगे परन्तु उनके न्यून दलने कुछ उछल कूद की समझदार दलने हृदयसे समर्थन किया। मुसलमानोंका विरोधी दल संप्रदायवादी था जिसका कहना था कि गैर मुसलमानोंको कानून न बनाना चाहिये, वे डेढ़ ईटकी मस्जिद अपनी अलग बनाना चाहते थे । हैदराबादकी उस्मानियां यूनिवर्सिटीके डाक्टरने इस हिलका समर्थन किया । मियां शाहनेवाज व मि० जिलाने समर्थन करते हुए कहा कि तु में रेखा कासून रहलेसे बना है, वहां पर १८ वर्षसे कम उमर की लड़की की शादी दण्डनीय है।