________________
दफा २३ ]
हिन्दूलाँ के स्कूलोंका वर्णन
(ख ) सुबोधिनी-मिताक्षरापर टीका है ( देखो दफा ८ और दफा ६
पैरा २२) (ग) वीरमित्रोदय--गोपालचन्द्र शास्त्रीने अगरेजी भाषांतर किया है
सन् १८७६ ई० में (देखो दफा १ ) बनारसस्कूलका लॉ समझने के लिये और मिताक्षरामें जो संदेह पड़े उसके मिटानेके लिये यह
ग्रन्थ माना गया है 12 M. I. A. 448; 3 B. 369; 25C. 367. (घ) कल्पतरु - इसे तेरहवीं शताब्दीमें पं० लक्ष्मीधरने लिखा था। (ङ) दत्तकमीमांसा-सदरलेन्ड साहबने इसका अङ्गरेजी भाषांतर किया
है ( देखो दफा ६ पैरा २४) । (च) निर्णयसिंधु--सन् १६१२ ई० में इसे पं० कमलाकरने लिखा था। (२) सिथिलास्कूल--यह स्कूल, तिरहुत और उत्तरबिहारमें १५ वीं शताब्दीमें चन्द्रेश्वर और वाचस्पतिका जारी किया हुआ है।
( क ) मिताक्षरा--( देखो दफा १ पैरा ११) ( ख ) व्यवहारचिंतामणि और विवादचिंतामणि-इन दोनों ग्रन्थोंको
वाचस्पति मिश्रने मिथिलामें बनाया था ( देखो दफा ६) मिथिलास्कूलमें यह ग्रन्थ सबसे बढ़कर मान्य है विवाद चिंतामणिका
अनुवाद बाबू प्रसन्नकुमार ठाकुरने किया है। 11 M.I.A. 487. (ग) विवाद रत्नाकर-यह ग्रन्थ चन्द्रेश्वरका लिखा है वे सिथिला नरेश __ के मंत्री थे इसका अनुवाद बाबू गुलाबचन्द्र सरकार और बाबू
दिगंबर चटरजीने अगरेज़ीमें किया है। (घ) दत्तकमीमांसा--( देखो दफा ६ पैरा २४) (ङ) द्वैतनिर्णय -यह ग्रन्थ वाचस्पति मिश्रका बनाया है। (च) शुद्धिविवेक-इसके कर्ता रुद्रधर थे।
(छ) द्वैत परिशिष्ट- इसके कर्ता केशव मिश्र थे । (३) बम्बई स्कूल-महाराष्ट्र स्कूल--(क) मिताक्षरा-( देखो दफा ६) पश्चिम भारतमें यह ग्रन्थ उत्तराधिकारके मामलेमें सबसे अधिक मान्य है। मयूखका दरजा इससे नीचे है, नीचा होनेपर भी शास्त्रीय आशाओं के विषयमें यह भी अधिक मान्य ग्रन्थ है 12 B. H. C. R. 65; 2 B. 418. रत्नागिरी जिलेमें मिताक्षरा सर्व प्रधान ग्रन्थ है 14 B.605, 612 मयूखका दरजा दूसरा है। मिताक्षरा और मयूखका अर्थ एक दूसरेसे मिलाकर करना चाहिये। उत्तराधिकारके मामलेमें जहां मिताक्षरा और मयूखमें मतभेद हो वहांपर मयूखकी बात मानी जायगी साधारण नियम यही है; जहां तक सम्भव हो