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धार्मिक और खराती धर्मादे [ सत्रहवां प्रकरण
हैसियत - जायदाद के लिये मेनेजर ट्रस्टीकी हैसियतमें होता है लेकिन मंदिर की पूजा आदि के लिये उसकी पुजारी की हैसियत है चाहे और भी कोई आदमी पुजारीका काम करते हों; देखो -- 33 I. A. 139; 29 Mad. 283. दफा ८५३ प्राचीन रवाज क़ायम रहना जरूरी है
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मेनेजर या ट्रस्टी का कर्तव्य है कि धर्मादे की संस्थाके प्राचीन रवाज बराबर जारी रखे, अगर न रखे तो वह ट्रस्ट भङ्ग करनेका दोषी होगा और अगर वह जानबूझकर उस रवाजमें कोई खास फेर बदल करे और अदालत से डिकरी प्राप्त करके मन्दिरमें पूजा करने वालोंको वाध्य करे कि वे उस बदले हुये रवाजको माने तो वह और भी ज्यादा दोषी होगा; देखो - 35 I . A. 176; 12 C. W. N. 946; 37 Mad. 435 to 455; ऐसा करने से मेनेजर या ट्रस्टी आदि हाईकोर्टके हुक्म इमतनाईके द्वारा रोका जासकता है, देखो -- 80Mad. 168.
यदि कोई शिवायत मूर्तिको अपने घरमें प्रतिष्ठित करके पूजा करे और अदालतको यह आवश्यक मालूम हो तो अदालत उसे ऐसा करनेको आज्ञा देगी मगर शर्त यह है कि उस मूर्तिका स्थापक इसके विरुद्ध आज्ञा न दे गया हो -- 19 W. C. R. 28.
इन्तज़ाम सम्बन्धी कोई काम अगर किसी रवाज के अनुसार होता हो और वह रवाज उचित हो तो वह काम वैसाही होगा । उदाहरणके लिये जैसे कहीं ऐसी रवाज हो कि मरम्मतका खर्च किसी खास फण्डमें से दिया जाय तो वह वैसाही किया जायगा देखो - 17 Mad. 199,
दफा ८५४ बहुमत माना जायगा
ट्रस्टकी जायदाद के इन्तज़ामकी प्रत्येक बातका उचित विचार करने के पश्चात् अधिकांश ट्रस्टियोंकी जो रायहो वही मानी जायगी और उस रायके पावन्द न्यून पक्षके ट्रस्टी भी होंगे यानी वे कभी ऐसा उजुर नहीं कर सकते कि उस बातपर हमारी राय नहीं थी इसलिये हम पाबन्द नहीं हैं; देखो—–6 Mad. 270; 34 Mad. 406; लेकिन अगर वह बात ट्रस्टियों के अधिकारके बाहर हो या क़ानूनके विरुद्ध हो तो उसका पाबन्द कोई ट्रस्टी न होगा, देखो - 30 Mad. 103.
दफा ८५५ आमदनीका ख़र्च
मेनेजर, शिवायत, जायदादकी कुल आमदनी धर्मादे के उद्देशों केलिये.. खर्च कर सकता है, देखो - गिरजानन्द दत्तझा बनाम शैलजानन्द दत्तझा ( 1896 ) 23 Oal. 645 के मामले में दोनों फरीक़ एक मंदिर के ओझा या