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दफा ८५१-८५२]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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विचार व विश्वासके अनुसार पूजा रचा करेंगे। सन् १९०५ ई० में जैनियों की एक सभा हुई जिसमें सारी बातें तय हो गई और एक टाइम टेबिल बना दिया गया जिसके अनुसार दोनों फिरकोंको अपने अपने ढंगके मुताबिक अपने अपने निश्चित समय पर जो कि बराबर बराबर था, पूजा करनेका , इख़्तयार दे दिया गया। बादमें सन् १९०८ ई० के लगभग दिगम्बरियोंने मूर्ति को छील डाला और नग्न कर दिया उसके ऊपरसे पत्थरमें की खुदी हुई पोशाक हटा दी । यह पोशाक लगभग ६० वर्ष पहले श्वेताम्बरियोंने खुदवाई थी। पोशाकके हटाये जाने पर दोनों फिरकोंमें झगड़ा पड़ गया जो लगभग २३ बर्ष तक चलता रहा। यह मुकद्दमा पहले अकोलाके अडीशनल डिस्ट्रिक्ट जजके यहां बहुत अरसे तक चलता रहा। इस मुकदमे में श्वेताम्बरी मुहई थे और दिगम्बरी मुद्दालेह थे बादमें अडीशनल जज साहबके यहांसे फैसला हुआ कि दोनों फरीक मिलकर इन्तिज़ाम करनेके हकदार हैं और जिस तरह से दिगम्बरी चाहें अपने विश्वासके मुताबिक पूजा रवा करें और श्वेताम्बरियोंको उनके काममें हस्तक्षेप करनेका कोई अधिकार न होगा। ___इस फैसलेसे असन्तुष्ट होकर श्वेताम्बरियोंने मध्यप्रदेशके जुडीशल कमिश्नरकी अदालतमें अपीलकी,दिगम्बरी भी उपरोक्त फैसलेसे असन्तुष्ट तो थे ही उन्होंने भी अपने एतराज़ पेश किये अपीलमें जुडीशल कमिश्नरने यह तजवीज़की कि श्वेताम्बरियोंको मन्दिर और मूर्तिके इन्तिज़ाम करने का पूरा२ अधिकार है दिगम्चरियोंको नहीं। दिगम्बरियोंने इस्टापैलकी जो दलील श्वेताम्बरियोंके खिलाफ पेशकी है वह खारिजकी जाती है क्योंकि इस मामले से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है पूजा करनेका पूरा अधिकार दिगम्बरियों को दिया जाता है जैसाकि टाइम टेबुलमें लिखा है। यही फैसला प्रिवी कौन्सिल की अदालतने भी ठीक माना है। दफा ८५२ मेनेजरका खर्च और हैसियत
मेनेजरने उचित कामों के लिये मेनेजरकी हैसियतसे जो खर्च किया हो या किसीने उसके पदके पाने के लिये दावा किया हो और उसकी पैरवीमें मेनेजरने जो कुछ खर्च किया हो वह खर्च मेनेजरको या मेनेजरके मरनेके बाद उसके वारिसोंको या अगर मेनेजर वसीयत कर गया हो तो उसकी वसीयतके तामील करने वालोंको, ट्रस्टकी जायदादसे अदा किया जायगा, देखो---37 I. A. 27; 37 Cal. 229; 14 C. W.N. 261.
ऐसे रुपयेके पानेके लिये मेनेजरके वारिस या उसकी वसीयतकी तामील करने वाले जो दावा करें उसकी मियाद ६ वर्षकी है, देखो-कानून मियाद Sch. 1 Art. 120.