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दफा ८२६]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
नहीं है। देखो-11 Cal. L. R. 370; 5 Cal. 700, 6 Cal. L. R.5813 Cai 563; 2 Cal. L. R. 121; 23 W. R. C. R. 76, 8 Cal. 788. दफा ८२९ धर्मादेका सुबूत
दुर्गानाथ बनाम रामचन्द्र सेन 2 I. A. 52. में कहा गया कि जायदाद का धर्मादेके लिये दिया जाना पूर्ण रूपसे साबित करना होगा। और जबकि मरने वालेने मृत्युके समय सिर्फ ज़बानसे कहकर कोई दूस्ट कायम किया हो और उसके सम्बन्धमें ऐसी बातें कहीं हों जिनसे यह ठीक मालूम न होता हो कि वह अपने परिवारको अपनी सारी जायदादसे बंचित रखनेका इरादा रखता था या नहीं तो ऐसे मामले में अदालत दूस्टका मज़बूत सुबूत मांगेगी, देखो-3 W. R. C. R. 16555 W. R. C. R. 82.
जब कोई ज़मीन हमेशाके वास्ते इस तरहपर धर्मादेमें दीगई हो कि न तो वह बेची जा सके और न उससे कभी अलगकी जा सके तो ऐसे मामले में धर्मादेका पूरा सुबूत देना होगा, देखो-27 Cal. 244; 4 C.W. N.405.
किसी देवताके नामसे ज़मीन खरीद लेना इससे धर्मादा कायम नहीं हो जाता और जब यह प्रश्न उठे कि धर्मादा सच्चा है या जाली? तो उसके सम्बन्धकी जायदादके साथ धर्मादा कायम करने वाला और उसके वारिस क्या कार्रवाई करें यह एक आवश्यक और बहुत विचारणीय प्रश्न है। जाव. दादकी सव आमदनी यदि धर्मादेमें लगाई जाती हो तो वह अवश्य धर्मादा का सुबूत है और उससे यह मालूम होगा कि धर्मादा नेक नीयतसे कायम किया गया है, देखो-3 W. R.C. R. 142; 8 W. R.C. B. 425 16 C. W. N. 126. लेकिन अगर जायदादकी आमदनीका कुछ हिस्सा किसी देवता की पूजाके लिये खर्च किया जाता हो तो यह धर्मादेका पूरा सुबूत नहीं है, देखो-18 W. R. C. R. 399; 2 I. A. 52; 2 Cal. 341. यह ध्यान रहे कि यदि धर्मादा कायम करने वालेका इरादा जो किसी प्राचीन लिखतसे स्पष्ट न मालूम होता हो तो इस इरादेके निश्चित करने में उपरोक्त बातोंका झ्याल किया जायगा-36 I. A. 148; 36 C. 1003.
धर्मादेकी शौका सुबूत-आमतौरसे धर्मादेकी शर्ते धर्मादेकी लिखत से मालूम होंगी या अगर ज़वानी कायम किया गया हो तो वाक्योंसे मालम होगी जो धर्मादा कायम करने वालेने कही थीं, परन्तु बहुत समय व्यतीत हो जानेके कारण या अन्य किसी कारणसे शर्ते न मालूम हो सकती हों तो वैसेही धर्मादों में आमतौरसे जो शतॆ हुआ करती हैं वेही उससे भी लागू समझी जायंगी, उस धर्मादेसे जो काम होते हों उन कामोंका तरीका ही धर्मादेवी शतका सुबूत है, देखो-1 W. R. C. R. 108...