________________
१०१८
धार्मिक और खैराती धमादे
[सत्रहवां प्रकरण
manoramananAmAammmmmmmm
सकती और दान देनेके समय या दान देने वाले की मौतके समय, दान लेने वालेके जीवित रहनेकी जो शर्त है उसकी भी पाबन्दी करना होगी--14 B. L.B. 175; खैरात और धर्मादे के लिये वह दान ऐसा पूरा पूरा होना चाहिये कि जिससे धर्मादेमें दी हुई जायदाद नानाबिल इन्तकाल हो जाय-2 C. W.N. 154.
ठाकुर जी को समर्पितकी हुई जायदाद, फिर वापस नहीं हो सकीश्रीपति चटरजी चनाम खुदीराम बनरजी 41 C. L. J. 22; 82 I. C. 840; A. I. R. 1925 Cal. 442.
जो धर्मादा सिर्फ लेनदारोंसे बचने के लिये या दूसरोंका रुपया मारनेके लिये किया जाय उसका कुछ असर न होगा, सिर्फ 'देवोत्तर' शब्द या इसी अर्थका कोई दूसरा शब्द जोड़ देनेसे धर्मादा पूरा नहीं समझा जा सकता, देखो - श्यामचरणनन्दी बनाम अमिराम गोस्वामी 33 Cal. b11; 10 C.W. N. 738; धर्मादे का ट्रस्टनामा देखावटी और रद्दी समझा जायगा अगर उसमें कहा हुआ खैराती काम, या ट्रस्ट, कार्य में परिणत न किया जाय, या जब कि इस बातका कोई सुबूत न हो कि ट्रस्टनामे में कही हुई जायदाद धर्मादे में लगाई गयी है और पक्षकारोंके चाल चलनसे अदालतको इस बात का विश्वास हो जाय कि वह असली ट्रस्ट नहीं है, देखो--रूपलाल बनाम लक्ष्मीदास 29 Mad. 1; 12 Mad. 387; 15 C.W.N. 126.
यदि कोई व्यक्ति अपनी जायदाद किसी देवताके नाम इस अभिप्रायसे अर्पण करता है कि वह उसे उस कर्ज से बचा सके, जो कि उसपर अन्य महाजनोंका बाकी है। इस सूरतमें समर्पण नाजायज़ होता है और उसपर महाजनों द्वारा एतराज़ किया जा सकता है । इस बातके फैसल करने में कि आया समर्पण वास्तविक रीतिपर किया गया है या केवल जायदाद बचानेकी ग्ररज़ले नाम मात्रका समर्पण है, इस बातपर जांच करना अत्यन्त आवश्यक है कि जायदादका उपभोग किस प्रकार किया जाता है-श्री श्री काली माता देबी बनाम नागेन्द्रनाथ चक्रवर्ती A. I. R. 1927 Cal. 244
लेकिन अगर ट्रस्ट पूर्ण रूपसे ठीक ठीक कायम किया गया हो तो वह केवल इसलिये नाजायज़ नहीं हो जायगा कि उसकी शर्ते पक्षकारोंने पूरी नहीं की: देखो-12 Mad. 3879 30 All. 111; 14 ML. I. A. 289-306; 10 B. L. R 19-33-34; 17 W. R. 41-44; 15 C. W N. 126; और न वह जायदाद ट्रस्ट कायम करने वालेकी निजकी जायदाद बन सकेगी; देखो--18 W. R. C. R. 472, 23 W. RC R. 46; ऐसे मामलेमें सिर्फ यही किया जा सकता है कि दूस्टकी शर्ते पूरी कराई जायं, दूसरा उपाय