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________________ ६७३ दफा ८०१ - ८०२ ] वसीयत के नियम सकता है और उसीका नाम 'मृत्यु सन्निकटदान' या 'वसीयत' है। वसीयतका वर्तमान क़ानून हिन्दू धर्म शास्त्र के दानके नियमों के आधारपर ही बना है, दान के क़ानून और वसीयत के क़ानूनमें भेद है अङ्गरेजी राज्यकालके आरम्भ में वसीयत करने का अधिकार हिन्दुओंके लिये नहीं माना जाता था किन्तु सन १८३२ से माना जाने लगा -बीर प्रतापसाही बनाम राजेन्द्र प्रतापसाही महाराज ( 1867 ) 12 MI. A. 1-38 के मामले में प्रिवी कौन्सिलने हिन्दुओं के वसीयतके अधिकारको पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया है। वसीयत में स्टाम्प ज़रूरी नहीं है सादे कागज़पर भी वसीयत लिखी जा सकती है। जवानी वसीयत अब जायज़ न मानी जायगी ? - पहले के क़ानून में ज़रूरी न था कि वसीयत करने वाला लिखित वसीयत ही करे वह ज़बानी भी वसीयत कर सकता था मगर अब नये क़ानून के अनुसार यह बात क़तई तौर से तय कर दी गयी है कि अब ज़वानी वसीयत न की जायगी । वसीयत करने वाले के लिये निहायत ज़रूरी है कि वह वसीयतपर दस्तखत करे, अगर पढ़ा हुआ नहीं है तो अपने बायें हाथ के अंगूठेका निशान बना दे और उसपर कमसे कम दो आदमियों की गवाहियां करा दे । यह ध्यान रहे कि पहले वसीयत करने वाला शख्स अपने दस्तखत या अपना निशान बनावे पीछे उसी समय या पीछे गवाहियां हों, गवाहों को लाज़िमी है कि पूरा इतमीनान करके गवाही करें। यह क़ानून सन् १६२६ ई० में पास हुआ है जिसमें कहा गया है कि - ता० पहिली जनवरी सन् १६२७ ई० को या इसके पश्चात कोई हिन्दू जब वसीयत करे तो उस वसीयत पर ज़रूरी ( Shall ) है कि वसीयत करने वाला दस्तखत करे और उसपर दो गवाहियां हों जैसा कि इंडियन सक्शेसन एक्ट सन् १९२५ ई० की दफा ६३ में बताया गया है, देखो एक्ट नं० ३७ सन् १६२६ ई०. दफा ८०२ दान या वसीयत कौन कर सकता है और कौन नहीं कोई भी हिन्दू जिसकी मानसिक शक्तियां दुरुस्त हों और जो नावालिग न हो दानके तौरपर सब जायदाद जिसमें वह पूरा अधिकार रखता हो दे सकता है और जो जायदाद वह अपने जीवनकालमें इस तरह दे सकता था उसको वसीयतके द्वारा मी दे सकता है । न बट सकने वाली जायदाद भी वसीयत के द्वारा दी जा सकती है मगर शर्त यह है कि कोई खास रिवाज ख़ान्दानकी इसके विरुद्ध न हो या जायदाद के इन्तक़ालकी मनाही न हो, देखो - 26 I . A. 88; 22Mad. 383; 3 C. W. N. 415; 1 Bom L. R.. 277; 15 I. A. 51; 10 All 272; 13 Mad. 197. हिन्दू स्त्री अपना स्त्रीधन वसीयत के द्वारा दे सकती है मगर कुछ सूरतों में उसे अपने पतिकी मन्जूरी लेना होगी । जिस जायदाद में स्त्री सीमाव
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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